सुभाष कुमार गौतम/घुमारवीं
हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर और हमीरपुर जिला की सीमा पर लदरौर में संतोषी मां के मंदिर के दरबार में आज शाम को ढोल नगाडों के साथ सायर मेले का आगाज होगा। यह मेला सायर को होता है। जहाँ पर हमीरपुर, बिलासपुर, मंडी, ऊना व अन्य जिलों से व्यापारी आते हैं। दो जिलों की सीमा पर कई किलोमीटर लम्बा बाजार सज जाता है। देखने का नजारा तो तब बनता है जब मां के दरबार में घटिंयो, आरती व शंख की मिली-जुली आवाज़ वातावरण को मधुरमय बना देती है। हजारों लोग मेला देखने व मां के दर्शन के लिए पंहुचते है।
सायर ग्रामीण इलाकों में अपने पुराने तरीके से मानाई जाती है। माना जाता है कि इस दिन काला महीना यानि भाद्रपद महीना समाप्त हो जाता है। किसानों की फसलें पक कर तैयार हो जाती है। आज की रात नाई परिवार के लोग घरों में सायर लेकर आते हैं, जिसमें मक्की, धान, आमरूद व गलगल होते हैं। एक टोकरी में सायर माता को सजाकर रखा जाता है। ग्रामीण इलाकों में नाई द्वारा लाई गई सायर माता को लोग बड़ी बेसब्री से इंतजार करते हैं।
ऐसा माना जाता है कि सायर के बाद शरद ऋतु शुरू हो जाती है। काला महीना खत्म होने के बाद आने वाले पहले दिन मेला होता है। लोग अपने घरों में गेहूँ से डाली गई सेवइयां बनाते हैं। अब यह प्रथा खत्म होती जा रही है और दुकान से ही सेवइयां लाकर बनाई जाती है। सायर को इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है कि बरसात के चार महीने के बाद फसलों की कटाई शुरू हो जाती है। मौसम सुहावना हो जाता है। गर्मी से छुटकारा मिल जाता है।
मंडी, कुल्लू के हिस्सों में सायर अपने अंदाज से मनाई जाती है। छोटे लोग बड़े बुजुर्गों को अखरोट व द्रुभ देते हैं। बड़े लोगों के पांव छूते हैं और आशीर्वाद लेते हैं। जो आज भी हिमाचल की सभ्यता और संस्कृति का एक बड़ा उदाहरण है, जो हम लोग आज भी सर्दियों से चली आ रही इस प्रथा को संजोए हुए हैं।