हमीरपुर : यूँ तो प्रदेश भर में गुग्गा गाथा सुनाने गुग्गा मंडलियां रक्षा बंधन से घर-घर पहुंच रही है। जिला के टौणी देवी तहसील की बारीं गांव की गुग्गा मंडली की अपनी अलग ही ख़ासियत है। यहां गुग्गा मंडली के साथ ही कुल देवता कोल्हू सिद्ध की मंडली भी घर-घर जाकर फेरा डालती है। रात को गुग्गा व कोल्हू सिद्ध की मंडली किसके घर विश्राम करेगी, यह पहले से ही तय हो जाता है।
गुग्गा नवमी के साथ ही गुग्गा छत्र अपने मंदिर पहुंच जाता है। कुल देवता कोल्हू सिद्ध में बड़ा मेला लगता है। कोल्हू सिद्ध मंदिर के मुख्य पुजारी रघुबीर सिंह चौहान ने बताया कि मंडली के लोग पूरे नौ दिन कई नियमों का पालन करते हुए गुग्गा कथा सुनाते हैं। मेले से एक दिन पहले मंडली के सदस्य कोल्हू सिद्ध गुफा में भजन कीर्तन करते रात गुज़ारते हैं ।
रविवार को कोल्हू सिद्ध मेला
रविवार को गुग्गा नवमी का पर्व धूमधाम से मनाया जाएगा। इसे गुग्गा नवमी भी कहा जाता है। इस दिन गुग्गा देव (श्री जाहरवीर) का जन्मोत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन नागों की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि गुग्गा देव की पूजा करने से सांपों से रक्षा होती है।
राखी से शुरू होती है गुग्गा कथा
गुग्गा देव की पूजा श्रावणी पूर्णिमा से आरंभ हो जाती है। यह पूजा-पाठ 9 दिनों तक चलता है। यानी नवमी तिथि तक गुग्गा देव का पूजन किया जाता है, इसलिए इसे गुग्गा नवमी कहते हैं। गुग्गा देव महाराज से संबंधित एक किंवदंती के अनुसार गुग्गा देव का जन्म नाथ संप्रदाय के योगी गोरक्षनाथ के आशीर्वाद से हुआ था।
योगी गोरक्षनाथ ने ही इनकी माता बाछल को प्रसाद रूप में अभिमंत्रित गुग्गल दिया था। जिसके प्रभाव से महारानी बाछल से गुग्गा देव (जाहरवीर) का जन्म हुआ। गुग्गा नवमी के संबंध में यह मान्यता है कि पूजा स्थल की मिट्टी को घर में रखने से सर्पभय नहीं रहता है। ऐसा माना जाता है कि वीर गुग्गा देव अपने भक्तों की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।