मेरे घर भी आओ न
अम्बर में
चांद-तारों सी टिमटिमाती
धरती पे
फ़ूलों सी मुस्कुराती
प्रिय
एक झलक तुम अपनी
मुझको भी दिखलाओ न
प्रिय-
मेरे घर भी आओ न
दिन उदास-उदास सा
रातें भी मायूस हैं मेरी
मीठी अपनी बातों से
आकर मुझको बहलाओ न
प्रिय-
मेरे घर भी आओ न
तकते-तकते राह तुम्हारी
आंखें भी अब हारी हैं
आकर कोमल हाथों से
थपकी दे इन्हें सुलाओ न
प्रिय-
मेरे घर भी आओ न
न रहे ख़ुशी की सीमा कोई
दिल में फ़ूल खि़लाओ न
छम्म से आकर चुपके से
तुम मुझको चौंकाओ न
प्रिय-
मेरे घर भी आओ न
मालूम है तुम न आओगी
न घर मेरा महकाओगी
मेरे भ्रम को तोड़ लबों पर
हंसी बन खि़ल जाओ न
प्रिय-
मेरे घर भी आओ न
अपने पैर की कोमल आहट
तम हरती वो मुस्कुराहट
अपने कंठ के मधुर स्वरों से
सोए भाग्य जगाओ न
प्रिय-
मेरे घर भी आओ न
कवि- पंकज तन्हा
नाहन, जिला सिरमौर (हिप्र)
काव्य संग्रह- शब्द तलवार है