एमबीएम न्यूज़/कुल्लू
भगवान रघुनाथ की नगरी कुल्लू घाटी होली के रंगों से सरोबर हो गई है। होली के उत्सव पर जगह-जगह लोगों ने टोलियां बनाकर एक दूसरे को गले लगाकर होली की बधाई दी। भगवान रधुनाथ की नगरी में होली के 8 दिन पहले से ही वैरागी समुदाय (महंत) के लोग ब्रज भाषा में होली के पारंपारिक गीत गाकर भगवान रघुनाथ, शिव शंकर, बिष्णु, ब्रम्हा, महेश, सीता राम, राधा कृष्ण की भक्ति का गुणगान होली के गीतों के द्वारा करते है। होली का इतिहास रघुनाथ के कुल्लू आगमन के साथ ही शुरू हुआ था।
रघुनाथ के साथ महंत समुदाय के लोग भी अयोध्या से यहां आए थे। उस समय से ही होली का प्रचलन शुरू हो गया था। बैरागी समुदाय के लोगों द्वारा बृंदावन अयोध्या, मथुरा और अवध की तर्ज पर होली का गायन का भी आयोजन गया। लोगों ने अधिष्ठाता देवता रघुनाथ जी के चरणों में गुलाल उड़ाया। बाकी जगहों से पहले ही छोटी होली और बडी होली की तर्ज पर मनाई जाती है। स्थानीय निवासी विनोद मंहत ने बताया कि भगवान रघुनाथ के साथ अयोध्या से महंत समुदाय के लोग 1660 ईस्वी में कुल्लू आगमन के बाद वहां की परंपरा का निर्वहन कर रहे है।
उन्होंने कहा कि उनके पूर्वजों ने अयोध्य की परंपरा का निवर्हन यहां पर किया। बंसत उत्सव के साथ होली के त्यौहार की परंपरा शुरू होती है। 40 दिन तक कुल्लू घाटी में महंत समुदाय के हर घर में होली के गीत बृज भाषा में गाते है। होली के सात दिन पहले हर दिन शाम के समय भगवान रघुनाथ के मंदिर में शाम की पूजा के समय बृज भाषा में होली के पारंपारिक गीत गाए जाते है। जिससे भगवान रघुनाथ की नगरी में छोटी के दिन महंत समुदाय के शहर के विभाग कस्बों में पारंपारिक होली गायन का कार्यक्रम करते है। जिससे कुल्लू घाटी में छोटी होली की प्राचीन परंपरा का निर्वहन करते है।