वी कुमार/मंडी
विलुप्त होती जा रही पारंपरिक देव चोला नाटी को मंडी जिला प्रशासन ने फिर से जिवंत करने का प्रयास किया है। मंडी में जारी अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव में दशकों बाद देव चोला नाटी का आायेजन किया गया। क्या है देव चोला नाटी, जानिए इस रिपोर्ट में।
पहाड़ी प्रदेश हिमाचल की अपनी एक प्राचीन स्मृद्ध संस्कृति है। लेकिन बदलते वक्त के साथ यह संस्कृति विलुप्त होती जा रही है। इन्हीं में से एक है पारंपरिक देव चोला नाटी। मंडी जिला की सराजघाटी और अन्य स्थानों पर देव चोला नाटी का प्रचलन पहले काफी हुआ करता था। इसमें लोग अपने पारंपरिक परिधानों और आभूषणों के साथ सजधज कर देवता के सामने नृत्य करते थे। इस दौरान देवरथ को भी कंधों पर उठाकर नृत्य करवाया जाता था।
खास बात यह है कि इसमें महिलाओं को भी पूरा अधिमान दिया जाता है और महिलाएं भी इस नाटी में अपनी अहम भूमिका निभााती हैं। अभी नाटी का प्रचलन तो है लेकिन पारंपरिक परिधानों वाली नाटी कहीं नजर नहीं आती। इसलिए जिला प्रशासन ने इस बार इसे सभी को दिखाने का एक प्रयास किया। सराजघाटी के आधा दर्जन से अधिक देवी-देवता और उनके देवलुओं ने इस चोला नाटी को सफल बनाने में अपना योगदान दिया। सभी पारंपरिक परिधानों में सजधज करे नाटी डालने पहुंचे। सर्व देवता समिति एवं करादार संघ के अध्यक्ष शिवपाल शर्मा ने बताया कि देवचोला नाटी का प्रचलन विलुप्त होता जा रहा था और इसे फिर से सहेजने का इस बार प्रयास किया गया है।
देव चोला नाटी में जब लोग पारंपरिक परिधानों में सजधज कर आए और देवरथों को कंधों पर उठाकर नृत्य किया तो यह दृश्य अलौलिक बन गया। इस दृश्य को देखने के लिए पड्डल मैदान में भारी भीड़ उमड़ी। झूमते देवरथों को देखकर हर कोई मंत्रमुग्ध हो गया। नाटी में कदमों से मिलते कदम और ढोल नगाड़ों की थाप से पूरा माहौल आनंदमयी हो गया। नाटी डालने आए कारदारों ने बताया कि उन्हें अपनी प्राचीन संस्कृति को दिखाते हुए हर्ष हो रहा है। इन्होंने युवाओं से आहवान किया कि अपनी इस संस्कृति को सहेजने के लिए हरसंभव प्रयास किए जाएं।
बता दें कि गत वर्ष भी देवनाटी का आयोजन किया गया था लेकिन देव चोला नाटी इस महोत्सव में दशकों बाद आयोजित हो पाई है। मंडी जिला प्रशासन ने इस बार कुछ नया करने का प्रयास किया और उसका सार्थक परिणाम यह निकला की इस प्राचीन संस्कृति के बारे में कईयों को जानने का मौका मिला।