अमरप्रीत सिंह /सोलन
समय के साथ पारम्परिक लोहडी का त्यौहार भी बदलता जा रहा है। कुछ वर्षो पूर्व तक पर्व पर घर-घर जाकार लोहडी मांगी जाती थी। लोहडी के गीत गाये जाते थे,लोग लोहडी के मौके एक दूसरे को बधाई देकर गीतो पर नृत्य करते थे, लेकिन आधुनिकता की परछाई मे यह सब लुप्त होता जा रहा है।
सोलन बाजार मे भी रौनक देखने को नहीं मिल रही है। रोजमर्रा के हिसाब से लोग बाजार आ रहे है। पर्व को खास बनाने के लिए बाजार मे बने सामान को घर ले जा रहे है। इस से पूर्व लोहडी के समय घरो मे ही तिल के तलोये सहित अनेक व्यंजन तैयार किये जाते थे। लेकिन लोगो को आधुनिकता की ऐसी चमक पडी कि वह लोहडी के समय घर मे तैयार होने वाले व्यंजनों को बाजारो से ही खरीद रहे है। जिससे दुकानदारो की चांदी हो रही है, लेकिन पारम्परिक तौर तरीके समाप्त होते जा रहे है। न तो अब वह युवाओ की टोलिया लोहड़ी मांगती दिखाई दे रही है न ही व पारम्परिक गीत लोगो के मुख से सुनने को मिलते है,लेकिन सोशल मीडियां मे गीत सुनने को मिल जाते है।
बजुर्ग लोगो की माने तो इस से पूर्व लोहडी पारम्परिक तरीके से मनाई जाती थी,युवाओ की टोलीयां घर-घर जाकर लोहडी मांगती थी, अब ऐसा नहीं है। इस त्यौहार को आधुनिकता की नजर लग गई है। उन्होंने बताया कि उनके समय मे युवा टोलीयो मे जाकर लोहडी मांगते थे..”सुदर मुंदरिये ने तेरा कौन बिचारा” जैसे अनेको गीत गाये जाते थे।
बाजार में लोहडी की खरीददारी करने आई महिला के अनुसार इस से पूर्व वह लोहडी पर तिल के तलावे सहित लोहडी मे प्रयोग होने वाले खाद्य पदार्थो को घर मे बनाती थी,लेकिन अब बाजार से ले जाना ही पंसद करती है। क्योंकि बाजार मे सब कुछ सहजता से मिल जाता है। वही बाजार में युवती से लोहडी के महत्व बारे जानने की कोशिश की तो उन्होेने बताया कि अपने बजुर्गो से सुना है कि लोहडी पर गीत गाये जाते थे।
इस बारे जब दुकानदार से बात की गई तो उन्होंने बताया कि पहले त्यौहार व अब मे खासा अंतर दिखाई देता है। उन्होंने कहा कि अब बाजार मे सारा सामान मिल जाता है। लोगो घरो मे न बनाने की बजाय बाजार से सारा सामान खरीद कर लोहडी का त्यौहार मनाते है।
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