नाहन (शैलेंद्र कालरा) : कुदरत ने नाहन के हाऊसिंग बोर्ड में भरत अग्रवाल के परिवार को अनोखी व दुर्लभ सौगात ‘‘ब्रह्मकमल’’ दी है। इस बार कुदरत ने इस सौगात को देने में कोई कंजूसी नहीं बरती। आश्चर्यचकित करने वाली इस सौगात में मंगलवार शाम करीब साढ़े 8 बजे गमलों में ब्रह्मकमल के फूल खिलने शुरू हुए। इसकी संख्या 14 थी।
एमबीएम न्यूज नेटवर्क के कैमरों में इस दुर्लभ फूल की तस्वीरें व वीडियो कैद हुए हैं। अहम बात है कि परिवार ने फूल को तोडऩे का लालच नहीं दिखाया और न ही इसके साथ कोई छेड़छाड़ की। केवल घंटों तक फूल को निहारा गया। आधी रात होते ही फूल वापिस कली के रूप में आ गए।
नौणी विश्वविद्यालय के फ्लोरीकल्चर व लैंडस्केप आर्किटैक्चर विभाग के प्रमुख डॉ. वाईसी गुप्ता ने इतनी कम ऊंचाई पर ब्रह्मकमल के फूल खिलने पर हैरानी जताई है। उनका कहना है कि यह एक बड़े शोध का विषय हो सकता है। हालांकि जून माह में भी अग्रवाल के परिवार के घर 5 फूल खिले थे।
उस वक्त हैरानी यह भी थी कि जून में फूल कैसे खिल सकते हैं, जबकि इन फूलों के खिलने का वक्त मानसून के मध्य में होता है। इस बार मध्य मानसून में ही ब्रह्मकमल खिले हैं। यह भी बताया गया कि एक पौधे पर 14 साल में ब्रह्मकमल खिलता है, लेकिन इस परिवार को यह सौगात 7 साल में ही मिलनी शुरू हो गई।
सरोज अग्रवाल ने कहा कि मंगलवार की रात जागकर ही बीती क्योंकि हर पल को परिवार देखना चाहता था। वहीं ब्रह्मकमल के दर्शन करने पहुंची शारदा महेश्वरी ने कहा कि उन्होंने केवल इस फूल के बारे में पुराणों में ही पढ़ा था। अब इसके दर्शन करना एक अनोखा अनुभव है।
क्या है फूल की विशेषता?
इस फूल को हिमालय पर्वत में खिलने वाले फूलों का राजा भी माना गया है। कहते हैं कि सृष्टि के निर्माता ब्रह्मा ने इस फूल को कुछ खास मौकों के लिए सृजित किया था, जिसके रूप हिमालय में ही रहे। फूल खिलने से पहले इसकी कली भी बेहद आकर्षक होती है। पत्ते में से कली बनती है। इससे पहले पत्ते से ही टहनी बन जाती है। अमूमन यह दुर्लभ फूल 11 से 17 हजार फुट की ऊंचाई पर मिलता है। दीगर बात यह है कि नाहन की ऊंचाई 3 हजार फुट के करीब है। अब इस ऊंचाई पर दुर्लभ फूल का खिलना लाजमी तौर पर कुदरत की अनोखी सौगात है।
क्या हैं धार्मिक मान्यताएं?
ऐसी मान्यता है कि इस दुर्लभ फूल को सौभाग्यशाली लोग ही देख सकते हैं। कहते हैं कि जब भगवान शिव ने गणेश को हाथी का सिर लगाया था, उस वक्त जब भगवान गणेश का स्नान किया गया था तो उस समय उनके स्नान में ब्रह्मकमल का भी प्रयोग किया था। इसीलिए इसे भगवान के प्रिय सफेद कमल की संज्ञा भी दी जाती है।
आधुनिक विज्ञान में इस फूल के कई औषधीय गुण हैं। एक अन्य धारणा यह भी है कि वनवास के दौरान द्रोपती बेहद अपमानित महसूस कर रही थी, क्योंकि कौरवों ने भरी सभा में उसका चीरहरण किया था। द्रोपती जंगल में इस फूल को देखकर अपने सारे दुखों को भूल गई थी।