एमबीएम न्यूज़/शिमला
सुर्खियों में चल रहे छात्रवृति घोटाले में आखिरकार पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर ली है। सूबे के निजी शिक्षण संस्थानों में फर्जी दाखिले दिखाकर करोड़ों के घोटाले के इस मामले में छोटा शिमला थाने में आईपीसी की धाराओं 419, 465, 466 और 471 के तहत केस दर्ज हुआ है। यह एफआईआर उच्च शिक्षा निदेशालय के वोकेशनल को-ऑर्डिनेटर व एसपीएम एंड एनआईयू के राज्य परियोजना अधिकारी शक्ति भूषण की शिकायत पर दर्ज हुई है। शिक्षा विभाग ने शक्ति भूषण को इस मामल में जांच अधिकारी नियुक्त किया था।
उन्होंने जांच में पाया कि कांगड़ा के 250 छात्रों ने कर्नाटका और लवली विश्वविद्यालय के फतेेहपुर और वडुखार केंद्रों में प्रवेश लिया है। फॉर्म भरने के समय, उपरोक्त निजी विश्वविद्यालय के प्रबंधन ने अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति वर्ग के छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान करने की घोषणा की, जो उनके आधार आधारित लिंक खाते में स्थानांतरित हो गए हैं। लेकिन इन संस्थानों ने छात्रों को किसी भी तरह की छात्रवृत्ति नहीं दी है और छात्रों के खातों के बजाय छात्रों के आधार कार्ड का दुरुपयोग करके खोले गए नकली खाते में जमा किया गया है। बता दें कि यह घोटला करीब 250 करोड़ से अधिक का है और राज्य सरकार इसकी जांच सीबीआई से करवाने का ऐलान कर चुकी है। हाल ही में शिक्षा विभाग ने घोटाले से संबंधित दस्तावेज गृह विभाग के हवाले किए थे। गृह विभाग अब इस रिकॉर्ड को सीबीआई को भेजेगा।
गौरतलब है कि इस मामले का खुलासा तब हुआ था, जब जनजातीय क्षेत्र लाहौल स्पीति में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति राशि नहीं मिली। किसी ने इसकी शिकायत शिक्षा विभाग में की। विभाग ने मामले में जांच बिठाई और पाया कि प्रदेश के कई इलाकों में फर्जी एडमिशन से छात्रवृत्ति राशि के नाम पर घोटाला हुआ है। मामले की गंभीरता को देखते हुए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने सीबीआई से जांच करने की सिफारिश की है। इस घोटाले में कई निजी शिक्षण संस्थान शक के घेरे में आ गए हैं। इसके अलावा छात्रवृत्ति पोर्टल बनवाने वाले अफसर भी संदेह के घेरे में है।
उच्च शिक्षा निदेशालय में गठित जांच कमेटी के सदस्यों के मुताबिक छात्रवृत्ति के लिए आवेदन करने वाले एचपीई पास पोर्टल में कई तरह की खामियां मिली है। इन खामियों का लाभ उठाते हुए ही निजी शिक्षण संस्थानों ने फर्जी ऐडमिशन दिखाकर विद्यार्थियों के नाम पर बैंक अकाउंट खोले और सरकारी धनराशि हड़पी हैं। जानकारी अनुसार छात्रवृत्ति आवंटन में निजी शिक्षण संस्थानों ने सभी नियमों को ताक पर रखा। वहीं साल 2013-14 से लेकर साल 2016-17 तक शिक्षा विभाग ने भी किसी स्तर पर छात्रवृत्ति योजनाओं की मॉनीटरिंग नहीं की।
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