एमबीएम न्यूज/हमीरपुर
हिम अकादमी पब्लिक स्कूल हीरानगर की एनएसएस इकाई को स्वच्छता अभियान में सब्जी के तौर पर इस्तेमाल होने वाली गुच्छी मिलने का दावा किया गया है। हालांकि वैज्ञानिक तफ्तीश के बाद ही इस नतीजे पर पहुंचा जा सकता है कि वास्तव में गुच्छी ही है। विद्यालय की वाइस चेयरमैन चंद्रप्रभा लखनपाल भी छात्रों के साथ स्वच्छता अभियान में जुड़ी हुई थी।
छात्रों ने उन्हें मधुमक्खी के छत्ते की तरह टोपी वाले पौधे मिलने की बात बताई। इसके बाद फोरेस्ट गार्ड बबीता को इन पौधों को दिखाया गया तो फोरैस्ट गार्ड ने इसे फंगस बताते हुए कहा कि यह गुच्छी की ही प्रजाति है। देश में गुच्छी को सुखाकर बेचने की कीमत 30 से 35 हजार रुपए प्रतिकिलो होती है। इसे अमूमन शाही व्यंजनों में ही परोसा जाता है। इसमें कई तरह के शारीरिक रोगों को भी ठीक करने की क्षमता होती है। दरअसल आज तक वैज्ञानिक मशरूम की तरह गुच्छी का कृत्रिम उत्पादन नहीं कर पाए हैं।
दरअसल गुच्छी के उत्पादन का बिजली कडक़ने के साथ एक गहरा रिश्ता होता है। एक खास सीजन के दौरान जब आसमान में बिजली कडक़ती है तो उस वक्त ठंडे इलाकों में गुच्छी कुदरती तौर पर जमीन से बाहर निकलती है। माना जाता है कि गुच्छी बेहतरीन एंटी ऑक्सीडेंट का काम भी करती है। कुल मिलाकर अगर हमीरपुर में गुच्छी मिलने का दावा सही साबित होता है तो लाजमी तौर पर चमत्कार से कम नहीं होगा।
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