विशेष संवादाता / शिमला
अब 13 साल का विनोद खिलखिलाकर हंस सकेगा, स्कूल भी जा पाएगा। साथ ही ठोस भोजन भी खा सकेगा। बड़ी बात यह है कि उसे अब कोई चिढ़ाएगा भी नहीं। आप यह जानकर दंग होंगे, चौपाल उपमंडल के रिमोट गांव के रहने वाला विनोद दो साल की उम्र से केवल तरल खाने पर ही जीवित था।
मुंह न खुल पाने से उसे सामाजिक तिरस्कार का सामना भी करना पड़ रहा था। इसी कारण पिछले 6 महीनों से स्कूल भी नहीं जा पा रहा था। यह सब कुछ राजकीय दंत चिकित्सा महाविद्यालय की बदौलत संभव हो पाया है। चिकित्सकों की टीम ने एक ऐसी दुर्लभ सर्जरी कर दिखाई है, जो प्रदेश में अपनी तरह की पहली कामयाबी है। दरअसल करीब तीन सप्ताह पहले विनोद चिकित्सकों के पास पहुंचा था। उस वक्त उसका मुंह मात्र 5 एमएम ही खुल पा रहा था।
सोमवार को जब उसे छुट्टी दी गई तो उसका मुंह सामान्य बालक की तरह 35 एमएम खुल रहा था। मुंह न खुलने की वजह से ही ठोस खाद्य सामग्री नहीं ग्रहण कर सकता था। लिहाजा गरीब परिवार उसे तरल पदार्थों की बदौलत ही जीवित रखे था। दंत चिकित्सा महाविद्यालय के विशेषज्ञ चाहते तो अस्थाई तौर पर भी उपचार कर सकते थे। लेकिन ऐसा न कर, आधुनिक चिकित्सा विज्ञान का इस्तेमाल करते हुए उसे स्थाई तौर पर सामान्य जबडे का आकार दिया गया।
आवासीय चिकित्सकों ने तो बालक के उपचार के लिए धन भी एकत्रित किया, क्योंकि परिवार इलाज के लिए धन जुटाने में समर्थ नहीं था।
कैसे हुआ बालक के लिए करिश्मा..
बेशक ही चिकित्सा विज्ञान के लिए बात सामान्य हो, लेकिन परिवार के लिए बच्चे का सामान्य हो जाना किसी चमत्कार से कम नहीं है। प्रोफैसर डॉ. रंगीला राव के नेतृत्व में डॉ. एसएस सोढी के अलावा आवासीय चिकित्सक डॉ. संदीप वैद्य, डॉ. विजय कांत, डॉ. श्री विद्या व डॉ. मनीष की टीम बनी। विनोद को टीएमजी डायगनॉज (रोग निदान) किया गया। इसमें सबसे बड़ी चुनौती विनोद के जबड़े की लंबाई को बढ़ाना था।
दंत चिकित्सा विज्ञान में आधुनिक उपकरणों का इस्तेमाल करते हुए विनोद के दोनों तरफ के जबड़ों की करीब 5 सैंटीमीटर लंबाई बढ़ा दी गई। यहां कोशिश का कुदरत ने भी साथ दिया। नेचुरल तरीके से जबड़े अपना सही आकार लेने लगे। जबड़े की गंभीर विसंगतियों पर चिकित्सकों की कोशिश कामयाब रही। लोअर जबड़े को फै्रक्चर किया गया। इसके बाद फरवरी 2018 में डिस्ट्रेक्शन डिवाईस लगाए गए, ताकि जबड़े की लंबाई बढ़ सके। इसके तहत हड्डी को तोड़ा जाता है।
करीब तीन सप्ताह तक चिकित्सकों ने डिवाईस लगाने के बाद उसे निगरानी में रखा। जब सबकुछ सामान्य हुआ तो उसे घर भेज दिया गया। इस महीने करीब चार सप्ताह पहले उसका ट्रीटमेंट फिर शुरू किया गया। चिकित्सकों की टीम की खुशी का ठिकाना उस वक्त नहीं रहा, जब पाया कि हड्डी सामान्य तौर पर बढऩी शुरू हो गई है। इसके बाद दूसरे चरण की कार्रवाई शुरू कर दी गई।
बालक ने खुद भी दिखाई इच्छाशक्ति
आप यह जानकर भी हैरान हो जाएंगे कि बालक ने खुद भी पूरी सर्जरी के दौरान जबरदस्त तरीके से हिम्मत दिखाई। माता-पिता साथ नहीं थे, क्योंकि पिता को दिहाड़ी कर परिवार का लालन-पोषण करना पड़ता है, वहीं मां घर का कामकाज देखती है। इस सर्जरी के दौरान विनोद का एक दूर का रिश्तेदार भाई ही कभी कभार मिलने आता था।
दंत चिकित्सा महाविद्यालय के प्रोफैसर डॉ. रंगीला राम राव बताते हैं कि चिकित्सा विज्ञान में रोगी का सहयोग भी बड़े मायने रखता है। उन्होंने कहा हालांकि इस तरह की दो सर्जरी 25 व 30 साल के रोगियों पर भी की गई थी, लेकिन इस तरह की सफलता नहीं मिल पाई थी।