शिलाई (अमित देसाई): किशाऊ बांध संघर्ष समिती व जौनसार बाबर महासभा चकराता के अध्यक्ष मुन्ना राणा ने कहा कि किशाऊ बांध परियोजना का निर्माण मोहराड व शंभर खेडा में राष्ट्र के लिए धोखा होगा। प्रस्तावित बांध स्थल पूर्णतय लुजपेशिन है और पूर्णतय कच्चे पहाड़ है। अगर सरकार अपनी जिद पर अड़ी रही तो इसके दूरगामी परिणाम भंयकर हो सकते हैं। साथ ही कई गांव व शहरों समेत दिल्ली को भी खतरा है।
शिलाई : पत्रकारों को संबोधित करते संघर्ष समिति के अध्यक्ष मुन्ना राणा।राणा ने कहा किशाऊ बांध विद्युत परियोजना की टैस्टिंग के दौरान विभागीय कर्मचारियों द्वारा बताया गया कि जो सुरंगे 200 मीटर बनानी थी, उन्हें 100 मीटर बनाने के बाद टैस्टिंग सैंपल पूर्णतय कच्चा होने की वजह से अधूरे में ही छोड़ दिया गया। उन्होंने बताया कि बावजूद इसकेअधिकारियों ने सतलुज नदी पर नाथपा झाकड़ी विद्युत जल परियोजना के सैंपल भेजकर किशाऊ जल विद्युत परियोजना के सैंपल बताकर जनता व सरकार से धोखा किया है।
राणा ने बताया कि सरकार समय रहते न चेती तो बांध निर्माण के पश्चात उत्तराखंड व हिमाचल के दर्जनों गांव पहाड़ के धसने से तबाह होंगे। साथ ही दिल्ली डूबने का भी अत्यधिक खतरा रहेगा। पहाड़ी क्षेत्र से पलायन होते जा रहे हैं। कृषि व्यवसाय से पूरे पहाड़ के गांव खाली होते जा रहे हैं। ऐसी स्थिति में उत्तराखंड के क्वानू क्षेत्र के गांवों से एक भी परिवार का पलायन नहीं हुआ। यहां कृषि योग्य उतम भूमि है। यहां की फसलों पर सूखे का असर भी नही पड़ता है।
राणा ने बताया कि क्वानू क्षेत्र कई हजार हैक्टेयर का समतल भू- भाग है। यदि प्रस्तावित किशाऊ बांध इसी तरह बनता है और क्वानू डूबता है तो प्राकृतिक आपदा आने व लुजपेशिन की वजह से दिल्ली तक डूब जाएगी। क्वानू क्षेत्र के लोगों की बांध संबंधित राय नहीं ली गई है। इसलिए हिमाचल की तहसील शिलाई व उत्तराखंड की तहसील चकराता के डूब क्षेत्र के ग्रामीण बांध बनने के खिलाफ है। क्वानू से आराकोट तक टौंस (तमसा) नदी की दूरी लगभग 90 किमी है।
राणा ने कहा कि बांध बनने से यह पूरा क्षेत्र प्रभावित क्षेत्र में आता है। नदी पर बड़े बांध की जगह 250 मैगावाट की चार छोटी यूनिटें बनाई जा सकती है। तमसा नदी पर जहां हार्डरोक्स के प्वांइट है, वहीं मयार, मिनस, प्लासू, आरकौट, त्यूनी में ऊंचे पहाड़ है। यदि छोटी यूनिट के रुप में जल विद्युत परियोजनाएं बनती है तो इससे क्षेत्र में पलायन व विस्थापन जैसी समस्यायों की बजाए क्षेत्र सहित देश का विकास होगा।
उन्होंने बताया कि इस संबंध में संघर्ष समिति के पदाधिकारी जुलाई माह के प्रथम सप्ताह में मुख्यमंत्री उततराखंड व हिमाचल के साथ-साथ देश के प्रधानमंत्री से मिलेंगे, ताकि दिल्ली को डूबने से बचाया जा सके।