वी कुमार/ मंडी
जनपद के अराध्य माने जाने वाले देव कमरूनाग के दर्शनों के लिए भक्तों की भारी भीड़ उमड़ रही है। आजकल देवता के मूल स्थान में भव्य मेले का आयोजन किया जा रहा है। आषाढ़ मास के आगमन पर देवता के मंदिर में हर वर्ष मेले का आयोजन किया जाता है जो आने वाले कुछ दिनों तक जारी रहता है। यही वो समय भी होता है जब लाखों भक्त देवता के दर्शनों के लिए उनके मूल स्थान पहुंचते हैं।
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बाकी समय यहां पहुंचना थोड़ा मुश्किल हो जाता है क्योंकि सर्दियों में यहां भारी बर्फ गिरती है और बरसात के दिनों में भी भारी बारिश होती है। इसलिए गर्मियों का मौसम ही देवता के दरबार तक पहुंचने का सबसे अच्छा मौसम रहता है। देव कमरूनाग के मंदिर तक मंडी से रोहांडा तक सड़क मार्ग से और उसके बाद 8 किलोमीटर का पैदल सफर तय करके पहुंचा जाता है। लाखों की संख्या में भक्त मंदिर पहुंचकर देवता के दर्शन कर रहे हैं।
देवता की झील में है खरबों का खजाना
देव कमरूनाग के मूल स्थान पर एक सुंदर झील भी है। इस झील में अरबों-खबरों का खजाना दबा हुआ है। देवता से जो भी भक्त मनोकामना मांगता है। उसके पूरा हो जाने पर अपनी इच्छा के अनुसार सोना-चांदी और नकदी इस झील में चढ़ाता है। झील में जो चीज चढ़ाई जाती है उसे निकाला नहीं जाता, इसलिए अभी तक इसमें अरबों-खरबों का खजाना जमा हो चुका है। लोग अपनी श्रद्धा के अुनसार झील में अपने शरीर का कोई गहना या फिर खरीद कर लाया हुआ जेवर चढ़ाने के साथ नकदी भी डालते हैं।
महाभारत के रत्तनयक्ष हैं देव कमरूनाग
दंत कथाओं के अनुसार महाभारत काल के रत्तन यक्ष ही देव कमरूनाग हैं। रत्तन यक्ष महाभारत के युद्ध में कौरवों की ओर से युद्ध में शामिल होने के लिए जा रहे थे। इस बात की भनक भगवान श्रीकृष्ण को लग गई। उन्हें रत्तन यक्ष की शक्ति का अंदाजा था। ऐसे में पांडव कौरवों को कुरूक्षेत्र के रण में हराने में असमर्थ होते। भगवान श्रीकृष्ण ने छलपूर्वक रत्तन यक्ष की परीक्षा लेते हुए उनका सर वरदान में मांग लिया।
रत्तन यक्ष ने महाभारत का युद्ध देखने की इच्छा जाहिर की। इसे स्वीकार करते हुए श्रीकृष्ण ने युद्ध स्थल के बीचों-बीच उनका सिर बांस के डंडे से ऊंचाई पर बांध दिया। युद्ध के बाद पांडवों ने कमरूनाग के रूप में रत्तन यक्ष को अपना आराध्यदेव माना। पांडवों के हिमालय प्रवास के दौरान कमरूनाग की पहाडियों में स्थापित कर दिया।
देव कमरूनाग के आगमन पर शुरू होता है अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव
जिला का सबसे बड़ा महोत्सव है अंतर्राष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव। यह महोत्सव तभी शुरू होता है जब देव कमरूनाग मंडी पहुंचते हैं। देव कमरूनाग एक छड़ी के रूप में मंडी लाए जाते हैं और उनका यह छड़ी रूप जहल गांव के पास वाले मंदिर में रखा होता है। करीब एक सप्ताह की पैदल यात्रा के बाद देव कमरूनाग के साथ आए पुजारी और देवलु मंडी जिला मुख्यालय पहुंचते हैं।
देव कमरूनाग के स्वागत के लिए खुद डीसी खड़े होते हैं। जैसे ही देव कमरूनाग मंडी पहुंचते हैं तो उसके बाद यहां का अंतर्राष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव शुरू हो जाता है। सात दिनों तक देव कमरूनाग टारना माता मंदिर में विराजते हैं और उपरांत इसके अपने मंदिर की तरफ रवाना हो जाते हैं।