वी कुमार /मंडी
इन दिनों सरकारी और निजी स्कूलों में दाखिलों की प्रक्रिया जारी है। मंडी में एक दाखिला ऐसा हुआ है जो सामान्य नहीं कहा जा सकता। यहां आईआईटी के एक प्रोफ़ेसर ने अपने बेटे का सरकारी स्कूल में दाखिला करवाया है। यहीं नहीं, इन प्रोफ़ेसर महोदय ने सरकारी स्कूल के लिए अपने स्तर बहुत कुछ करने की भी सोच रखी है।
शहरी क्षेत्रों में बात चाहे अधिकारी की हो या कर्मचारी की या फिर मिडल क्लास फैमिली की। कोई भी अपने बच्चे को सरकारी स्कूल में नहीं पढ़ाना चाहता। खासतौर पर खुद सरकारी स्कूलों के अध्यापकों के बच्चे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ते हैं। निजी स्कूलों के प्रति बढ़ती जा रही लोगों की सोच में बदलाव लाने की कोशिश की है, आईआईटी मंडी के एसिस्टेंट प्रोफ़ेसर रजनीश शर्मा ने। शर्मा मूलतः हमीरपुर जिला के रहने वाले हैं और आईआईटी मंडी में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
रजनीश शर्मा इतने बड़े संस्थान में एसिस्टेंट प्रोफ़ेसर होने के बाद अपने बेटे को सरकारी स्कूल में पढ़ा रहे हैं। कुछ दिन पहले ही उन्होंने राजकीय केंद्रीय प्राथमिक पाठशाला मंडी में अपने बेटे का दाखिला करवाया है। स्कूल के मुख्याध्यापक राजेश कुमार ने इसकी पुष्टि की है। हमने रजनीश शर्मा से कैमरे पर अपनी सोच रखने का निवेदन किया, लेकिन उन्होंने कैमरे पर कोई भी बात करने से इंकार कर दिया। इतना जरूर बताया कि बेटे का दाखिला सरकारी स्कूल में करवाया है, ताकि सरकारी स्कूलों के प्रति नजरिए को बदला जा सके।
स्कूल मुख्याध्यापक राजेश कुमार ने बताया कि जब आईआईटी के प्रोफ़ेसर अपने बेटे का दाखिला करवाने उनके स्कूल पहुंचे तो उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। राजेश ने बताया कि रजनीश शर्मा इस स्कूल के लिए भी अपने स्तर पर कुछ करना चाहते हैं। उन्होंने एक इंगलिश टीचर रखने का आग्रह किया है, जिसका खर्च वह स्वयं देंगे। साथ ही उनकी पत्नी भी स्कूल में स्वेच्छा से सेवाएं देना चाहती हैं। उनकी पत्नी गणित का ज्ञान रखती हैं।
रजनीश शर्मा का बेटा आदित्य शर्मा पहली कक्षा में पढ़ रहा है। वह रोजाना स्कूल आता है पढ़ता भी है साथ ही अन्य छात्रों तरह सामान्य गतिविधियों में हिस्सा लेता है। स्कूल में जो ज्ञान सभी बच्चों को मिलता है वही ज्ञान, आदित्य को भी दिया जा रहा है।स्कूल मुख्याध्यापक राजेश कुमार ने बताया कि सरकारी स्कूलों में शिक्षा पूरी तरह से निशुल्क है। इसके साथ ही सरकार और शिक्षा विभाग ने अब इतनी निगरानी करना और सुविधाएं देना शुरू कर दिया है, जिससे स्कूलों में किसी बात की कमी नहीं है।
उन्होंने बताया कि इसी सत्र में अब तक उनके स्कूल में 7 ऐसे बच्चे दाखिल हो चुके हैं, जिनके अभिभावक उन्हें नीजि स्कूलों से लाए हैं। एक तरफ निजी स्कूलों की मनमानी है, जहां अभिभावक पैसा देने के बाद भी कुछ नहीं बोल पाते और एक तरफ सरकारी स्कूल हैं जहां का काम अब बोलने लग गया है। समय के साथ बदलाव की बयार बहने लग गई है। उम्मीद यही की जा सकती है कि अधिक से अधिक अभिभावकों की सोच में बदलाव आएगा।