वी कुमार /मंडी
सदर हल्के की कोटमोरस (कांढी तारापुर) पंचायत के गांव चंडेह की रश्मि वार्षिक परीक्षा में तो पास हो गई, लेकिन जिंदगी की जंग ने उसे फेल कर दिया। रश्मि की तमन्ना थी कि वह सालाना परीक्षा परिणाम अपनी पाठशाला में जाकर अन्य बच्चों के साथ सुने मगर इससे पहले ही मौत के क्रूर पंजों ने उसकी जिंदगी छीन ली। 11 साल की रश्मि कोटमोरस पाठशाला में छठी कक्षा की छात्रा थी।
किस्मत का खेल देखिए कि उसकी असली बीमारी का खुलासा उस समय हुआ जब जीवन का खेल खत्म होने की कगार पर पहुंच चुका था। रश्मि की दोनों किडनियां खराब होने के कारण दो दिन पहले 29 मार्च को उसकी मौत हो गई। जिसका खुलासा शनिवार को स्कूल में रिजल्ट जारी होने के दौरान हुआ।
उसके पिता एक किसानी व मजदूरी करके अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं मगर इसके बावजूद भी उन्होंने अपनी इस 11 साल की बेटी का जीवन बचाने के लिए पूरा जोर लगा दिया। वह उसे पीजीआई तक ले गए मगर 12 मार्च को वहां भी डाक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए और घर ले जाने को कह दिया। घर पर 15 दिन के बाद उसकी मौत हो गई।
रश्मि के पिता मेघ सिंह को किसी से कोई शिकायत नहीं है वह इसे भगवान का खेल मान रहे हैं। वह इतना जरूर मानते हैं कि जब उसकी बेटी की असली बीमारी जो किडनियां खत्म होने की थी का पता चला तब तक सब खत्म हो चुका था। इससे पहले दूसरे ही रोगों का इलाज चलता रहा।
सवाल यह खड़ा होता है कि जब स्कूलों में लगातार हर बच्चे के लिए साल में एक बार मुख्यमंत्री विद्यार्थी स्वास्थ्य चेक अप योजना चल रही है, शहर से नजदीक होने के कारण जोनल अस्पताल में भी विशेषज्ञ डाक्टर मौजूद हैं तो भी कोई समय रहते यह पता नहीं लगा पाया कि रश्मि की दोनों किडनियां खराब हो रही हैं। मेघ सिंह के अनुसार एक साल पहले ही उसके तलवों में दर्द होने लगा था, उसका इलाज करवाया तो घुटने मुड़ने लगे, पैरों में गैप आने लगा।
उन्होंने कहा कि पहले बाल विशेषज्ञ और फिर हड्डी रोग विशेषज्ञ से उपचार हुआ मगर इसी साल फरवरी में जब अल्ट्रा साउंड हुआ तो पता चला कि उसकी किडनियां खराब हैं और अब देरी हो चुकी है। मेघ सिंह के अनुसार जिला रेडक्रास सोसायटी भी उसकी मदद को तैयार थी, डाक्टरों ने भी उपचार किया मगर शायद उसकी जिंदगी इतनी ही बची है।
मेघ सिंह ने बताया कि पीजीआई में उन्हें बताया गया कि बचपन में किसी बीमारी के इलाज के दौरान दवाई का ज्यादा डोज देने से किडनियां खराब हुई हो सकती है। उसके अनुसार बचपन में उसे तेज बुखार हुआ था और शायद उसकी समय कोई हेवी डोज की दवाई देने से किडनियों पर उसका असर पड़ा है मगर अब इन बातों का कोई मतलब नहीं। कोटमोरस स्कूल के प्रधानाचार्य धर्म पाल सरोच ने बताया कि जब उन्होंने इस स्कूल का कार्यभार संभाला तो रश्मि पढने आती थी। ऐसा लगता था कि वह किसी रोग के कारण अपाहिज हो रही है। ऐसे में उन्होंने उसके गांव के अन्य बच्चों को बस आदि में चढने उतरने के लिए इसकी मदद करते हुए साथ लाने को कह रखा था।
31 मार्च को आकर वह पूरे साल का परिणाम खुद स्कूल में आकर सुनना चाहती थी और इसके लिए उन्होंने एक अध्यापक की विशेष ड्यूटी लगाई थी कि वह उसे अपनी कार में साथ लाए मगर उससे पहले ही वह दुनिया से चल बसी। धर्मपाल सरोच ने माना कि कहीं न कहीं सिस्टम में कमजोरी है जिससे समय रहते सही रोग का पता नहीं चल पाता। ऐसे में सरकार यदि विद्यार्थी स्वास्थ्य चेक अप योजना को और मजबूती व गंभीरता के साथ अमल में लाए तो शायद कोई अन्य रश्मि इस तरह से 11 साल की अल्पायु में दुनिया को विदा न करे।