शिमला (शैलेंद्र कालरा): तो अब हिमाचल के नीरव मोदी “राकेश कुमार शर्मा” की तलाश प्रवर्त्तन निदेशालय करेगा। सिरमौर के पांवटा साहिब उपमंडल के माजरा में इंडियन टैक्नोमैक कंपनी लिमिटेड का प्रबंध निदेशक राकेश कुमार करीब चार साल से भूमिगत बताया जा रहा है।
सूत्रों की मानें तो आबकारी व कराधान विभाग ने शुक्रवार की बैठक में इस मामले को प्रवर्त्तन निदेशालय को सौंपने को सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है। दरअसल प्रबंध निदेशक पर विभाग की लगभग 2500 करोड़ की देनदारी है, जबकि आयकर विभाग की देनदारी तकरीबन 1000 करोड़ बताई जा रही है। इसके अलावा बैंकों की राशि का भी साहब ने फ्रॉड किया हुआ है। 2013 में आयकर विभाग ने कंपनी के देशभर में फैले ठिकानों पर दबिश दी थी।
चूँकि कंपनी का मुख्य ऑपरेशन माजरा ( पावंटा साहिब ) से ही किया गया लिहाजा पुरे फ्रॉड की स्क्रिप्ट यही लिखी गई।
2014 में आबकारी व कराधान विभाग के इक्नोमिक इंवेस्टीगेशन यूनिट ने कंपनी के बड़े फ्रॉड को पकड़ा था। इसमें टर्नओवर को कई गुणा बढ़ाकर तो दिखाया जा रहा था, लेकिन असल में कोई भी उत्पादन नहीं हो रहा था। सेल्सटैक्स की चोरी के अलावा फ्रॉड तरीके से औद्योगिक पैकेज का भी फायदा लिया जा रहा था। बैंकों से ली गई राशि का इस्तेमाल बेनामी सौदों में किया गया।
बताते हैं कि कंपनी का एमडी मूलत: चार्टड अकाउंटेंट है, जो औद्योगिक इकाईयों को ऋण दिलवाने का काम करता था, जिसने अचानक ही अपनी खुद की कंपनी बनाने का फैसला ले लिया। इस कंपनी में एक सेवानिवृत आईएएस अधिकारी के बेटे को भी निदेशक बनाया गया।
उधर आबकारी व कराधान विभाग के प्रधान सचिव जेसी शर्मा ने एमबीएम न्यूज नेटवर्क से बातचीत में माना कि केस का रिव्यू किया गया है। उन्होंने कहा कि प्रवत्र्तन निदेशालय को मामला सौंपने से पहले प्रदेश के किसी भी थाने में एफआईआर लाजमी है। लिहाजा पहले एफआईआर दर्ज करवाई जाएगी। इसके बाद सरकार की अनुमति मिलने के बाद ही मामला प्रवर्त्तन निदेशालय को सौंपा जा सकता है।
प्रधान सचिव ने कहा कि चूंकि कंपनी का ऑपरेशन देश के अन्य राज्यों के अलावा विदेशों में भी था, लिहाजा केंद्रीय एजैंसी ही उपयुक्त समझी जा रही है। फिलहाल इस पर अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है।
क्यों लिया गया ईडी को मामला सौंपने का फैसला…
सूत्रों का कहना है कि 2014 में फ्रॉड के उजागर होने के बाद कंपनी के प्रबंधन ने हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक केस लड़े। आबकारी व कराधान विभाग ने केस जीते। यह स्थापित हुआ कि कंपनी पर एक्साइज विभाग की लगभग 2200 करोड़ की देनदारी है, जो आज ब्याज समेत 3000 करोड़ के आसपास हो चुकी होगी। लेकिन चार साल से विभाग चुप्पी साधे रहा।
सीआईडी ने अलग मामले में कंपनी पर केस तो बनाया, लेकिन इस फ्रॉड को लेकर कोई भी कार्रवाई नहीं हुई। शुक्रवार को विभाग के प्रधान सचिव जेसी शर्मा की उपस्थिति में प्रदेश भर के अधिकारियों की बैठक में यह मामला उठा। इस पर प्रधान सचिव ने मुख्यालय के अधिकारियों की मौखिक जवाबतलबी भी की। तत्काल प्रभाव से मामला प्रवर्त्तन निदेशालय को भेजने का फैसला ले लिया गया।
बैंकों व आईटी को भी उठाना चाहिए मामला..
इस मामले से जुड़े जानकारों का कहना है कि राष्ट्रीयकृत बैंकों समेत आयकर विभाग को भी मामला उठाना चाहिए, क्योंकि बैकों समेत इन्कम टैक्स विभाग की भी अढ़ाई हजार करोड़ से तीन हजार करोड़ की वसूली बकाया है।
क्यों है विदेश में छिपे होने की आशंका..
बताया जा रहा है कि 2014 के बाद से एमडी के तमाम ठिकानों पर दबिश दी गई, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला। मार्च 2014 में जब आबकारी व कराधान विभाग की टीम ने फैक्टरी में दबिश दी थी तो इसके कुछ दिन बाद ही फैक्टरी पर स्थाई तौर पर ताले लटक गए। चूंकि बैंकों की रकम से बेनामी सौदे किए गए, लिहाजा मामला सीधे-सीधे मनी लॉड्रिंंग से जुड़ा हुआ है।
कितनी हो सकती है प्रापर्टी की कीमत…
विभागीय सूत्रों के मुताबिक सिरमौर में कंपनी की संपत्ति की वैल्युएशन की जिम्मेदारी हिमकॉन को सौंपी गई है। जल्द ही रिपोर्ट मिल सकती है। इतना जरूर माना जा रहा है कि प्रापर्टी की कीमत पौने 300 करोड़ के आसपास हो सकती है। चूंकि कंपनी के फ्रॉड में कई राज्यों के साथ-साथ मल्टीपल एजैंसियां शामिल हैं, लिहाजा मामले को प्रवर्त्तन निदेशालय को सौंपे जाने के लिए उपयुक्त माना जा रहा है।