मंडी (वी कुमार): प्रख्यात पर्यावरण प्रेमी नरेंद्र सैणी ने उहल व ब्यास नदी में परियोजनाओं से सिल्ट डालने पर गहरी चिंता जताते हुए इस कृत्य पर तुरंत रोक लगाने की मांग की है। उन्होंने कहा कि ट्राउट मछली एक नवंबर से 28 फरवरी तक प्रजनन करती है। उस दौरान सरकार ने इस प्रजाति की मछलियों को पकडऩे पर पाबंदी लगा रखी है।
शानन प्रोजेक्ट बरोट वालों ने 21 जनवरी 2018 से रात 1 बजे बांध से सिल्ट निकालने का कार्य शुरू किया जो कि अभी तक जारी है जिस कारण बरोट से लेकर जहां उहल नदी ब्यास नदी में मिलती है वहां तक ट्राउट मछलियां और कमांद में महाशीर प्रजाति की मछली अधिक मात्रा में पाई जाती थी, जोकि प्रदेश सरकार व भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार लुप्त होने वाली है। इस नदी में सभी ट्राउट मछलियां सिल्ट के कारण मर गई। इसी तरह से ब्यास नदी में महाशीर मछलियां इस सिल्ट के कारण मर गई।
यदि शानन परियोजना प्रबंधक बरसात के दिनों मेें सिल्ट छोड़ते तो मछलियां बच सकती थी, क्योंकि उन दिनों नदी में खूब पानी होता है। उपर से इन दिनों तो परियोजना से पानी जरा सा भी नहीं छोड़ा जा रहा है जबकि नियमानुसार 15 प्रतिशत पानी तो हर वक्त हर हालत में छोड़ा ही जाना चाहिए। पानी न होने तथा सिल्ट छोड़े जाने के कारण नदी के तमान जलजीवों का सफाया हो गया। यह सब पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा है, मछुआरों को रोजी रोटी के लाले पड़ गए हैं।
नरेंद्र सैणी ने कहा कि महाशीर मछली को टाइगर फिश भी कहते हैं। उन्होंने कहा कि भारत सरकार महाशीर को बचाने के लिए कई तरह के प्रयास कर रही है। नरेंद्र सैणी ने सरकार से मांग की है कि उहल में सिल्ट डालने के काम को तुरंत रूकवाया जाए व परियोजना प्रबंधकों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। परियोजना के बांध से नियमानुसार पानी छोड़ा जाए ताकि थोड़ा बहुत बचाव हो सके।
सैणी ने मतस्य अधिकारियों की कारगुजारी पर भी चिंता जताते हुए कहा कि वह केवल ब्यानबाजी करते हैं मगर मौका पर जाने का कष्ट नहीं करते।