नाहन (शैलेँद्र कालरा ): हर कोई जानता होगा, शांति संगम एक ऐसी जगह है जहां बैठकर सुकून मिलता है। 1960 में इस स्थान को शांति संगम का नाम दिया गया।
1962 में अपने जमाने के नामी शिल्पकार स्व. सनत चटर्जी ने इस स्थान पर ऐसी जीवंत मूर्तियों का निर्माण किया था, जो देखने पर लगती थी मानों बोल पडेंगी, लेकिन इस स्थान पर समय की ऐसी मार पड़ी कि सबकुछ मिटता चला गया। टूटी-फूटी मूर्तियों को सहेजने की कोशिश नहीं हुई। यहां तक की नई पीढ़ी इस जगह से ही अनभिज्ञ है।
आप यह जानकर हैरान हो जाएंगे कि महरूम गफूर चाचा के बड़े बेटे गुलशन अहमद (47)ने अपने दम पर शांति संगम का गौरव बहाल करने का प्रयास किया है। 15 दिन से लगातार इस कार्य में डटे हुए थे। सोमवार शाम इस कार्य को शिवरात्रि से पहले मुकम्मल कर लिया गया है। चूंकि महरूम गफूर चाचा की अंतिम ख्वाहिश थी कि इस स्थान को सहेजा जाए। लिहाजा बेटे ने ही बीड़ा उठा लिया।
बड़े बेटे को बताया था कि जब 1962 में शहर में आर्टस कॉलेज हुआ करता था, तब स्व. सनत चटर्जी ने इन जीवंत मूर्तियों का निर्माण किया था। उस समय उन्होंने निर्माण में मजदूरी की थी। सनद रहे कि दिवंगत गफूर अहमद ने अपना कैरियर आर्टस कॉलेज में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी शुरू किया था।
अब कारमल कान्वेंट स्कूल में शिक्षक के तौर पर तैनात गुलशन अहमद ने महज 20 हजार रुपए खर्च कर मूर्तियों की मरम्मत के अलावा पेंट का कार्य पूरा किया है। उन्होंने कहा कि स्कूल के शिक्षकों व छात्रों ने इस कार्य के लिए लगभग 12 हजार रुपए का योगदान दिया। खुद शिल्पकारी से टूटी-फूटी मूर्तियों की मरम्मत की।
अप्रैल 2017 में शांति संगम के निर्माता व मशहूर शिल्पकार सनत कुमार चटर्जी ने दुनिया को अलविदा कह दिया था। असल श्रद्धांजलि उसी सूरत में होनी थी, जब खंडहर में तबदील हो रहे शांति संगम को नया जीवन दिया जाता। एमबीएम न्यूज नेटवर्क ने शिल्पकार सनत कुमार चटर्जी के निधन पर शांति संगम की अनूठी कृतियों के बारे में समाचार प्रकाशित किया था।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि दिवंगत गफूर अहमद का परिवार हमेशा से ही हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे की मिसाल रहा है। इस बात को बड़े बेटे ने साबित करके दिखा दिया है। दरअसल शांति संगम के साथ ही एक प्राचीन मंदिर भी है। जिसमें अनोखी कला का प्रदर्शन सैंकड़ों साल पहले हुआ होगा, लेकिन मंदिर के कपाट अरसे से बंद पड़े हुए थे।
गुलशन अहमद ने अपने ही प्रयास से पूरे मंदिर को नया रंग दे दिया है। उनका कहना है कि प्राचीन मंदिर में कोई भी अब शीश नवाजने आ सकता है।
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