कुल्लू (एमबीएम न्यूज) : भारतीय समाज में देश के अंदर बहने वाली नदियों को सिर्फ जीवनदायिनी ही नहीं बल्कि कष्ठ निवारक भी माना गया है। ऊंचे-ऊंचे विशालकाय पहाड़ों से निकलने वाली नदियों में शारीरिक कष्टों को दूर करने की भी शक्ति होती है ऐसी मान्यता है। देवभूमि कुल्लू जिला में भी ब्यास नदी सहित घाटी के नदी नालों और झरनों में भी यह शक्ति आज भी मौजूद है। खासकर वर्ष में 20 भादो के दिन को लेकर देव समाज में खासी मान्यता है। 20 भादों को जिला कुल्लू के संगम स्थलों में हजारों भक्तों ने आस्था की डूबकी लगाई।
कहा जाता है कि 20 भादों के दिन नदी नालों के संगम स्थलों में स्नान करने से शारीरिक कष्टों के साथ-साथ पापों का भी नाश होता है। जिसके चलते 20 भादो के दिन में जिला के तमाम नदी-नालों के संगमों, झरनों और झीलों में स्नान करने वालों की होड़ रहती है। सोमवार को सुबह से ही तमाम संगम स्थलों और झरनों और झीलों में हजारों लोगों ने पवित्र स्नान किया इतना ही नहीं घाटी के देवी- देवताओं ने भी अपने हारियानों के साथ स्नान किया।
भुंतर के जीया संगम में भी भक्तों की भीड़ सुबह से ही जुटनी आरंभ हो गई और यहां ब्यास और पार्वती के संगम स्थल में आस्था की डूबकी लगाई ।
कहा जाता है कि इस दौरान पहाड़ों में उगने वाली औषधीय जड़ी बूटियों का रस बरसात के पानी में घुलकर नदियों में आ जाता है और यह औषधीय रस शारीरिक कष्टों के निवारण के लिए रामबाण माना जाता है। यह भी मान्यता है कि देवी देवता भी हजारों जड़ी बूटियों के रस युक्त इस पानी में अपने आप को भी पवित्र करते हैं जिससे उनकी शक्तियां बरकरार रहती है। देव समाज के लोगों की माने तो यह वह समय है जब पहाड़ों में उगने वाली औषधीय जड़ी बूटियों में रस आने लगता है और बरसात होने के कारण यह रस पानी के साथ घुलकर नदी नालों में आ जाता है। जिससे पानी भी औषधीय गुणों से युक्त हो जाता है।
जिसे किसी संजीवनी से कम नहीं माना जाता।
20 भादों को यहां लगाई डुबकी
बीस भादो के दिन जिला कुल्लू की ब्यास नदी के मनाली से लेकर बजौर तक के तमाम संगम स्थलों में लोगों ने आस्था की डुबकी लगाई। जिसमें भूतनाथ और ब्यास पार्वती संगम स्थल भुंतर प्रमुख हैं। इसके अलावा मणिकर्ण, सरेउलसर, रूद्रनाग, खीरगंगा, सैंज, तीर्थन, क्लाथ, मनाली, वशिष्ठ, रक्तिसर में आस्था की डुबकी लगाकर पवित्र स्नान किया।