शिमला(एमबीएम न्यूज़ ): उमंग फाउंडेशन ने आरोप लगाया है कि हिमाचल प्रदेश के शिक्षा विभाग की लापरवाही के कारण राज्य के विकलांग छा
जारी एक बयान में उमंग फाउंडेशन के ट्रस्टी और हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी में रिसर्च स्कॉलर सुरेंद्र कुमार ने कहा कि विकलांगजन अधिकार अधिनियम 2016 की धारा 32 में स्पष्ट प्रावधान है कि सभी सरकारी उच्च शिक्षण संस्थानों में विकलांग विद्यार्थियों को कम से कम 5ः आरक्षण दिया जाना अनिवार्य है। संसद ने यह कानून 16 दिसंबर 2016 को पास किया था और राष्ट्रपति से मंजूरी मिलने के बाद इसे पूरे देश में 19 अप्रैल 2017 से लागू कर दिया गया।
उन्होंने बताया कि सामाजिक न्याय एवं यों में दाखिले तथा होस्टलों में विकलांगों को 5 प्रतिशत आरक्षण नहीं दिया जा रहा है। इसे गरीब परिवारों के अनेक विकलांग विद्यार्थियों का भविष्य खतरे में पड़ गया है।अधिकारिता विभाग ने 5 मई को सभी प्रधान सचिवों को निर्देश जारी किए थे कि इस कानून को तुरंत प्रभाव से लागू किया जाए। इसके बावजूद शिक्षा विभाग समेत लगभग सभी विभागों ने नए विकलांगता कानून को लागू करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। दिलचस्प बात यह है कि निर्देश जारी करने वाले विभाग ने खुद भी इस दिशा में कागज़ी कार्रवाई के अलावा कोई काम नहीं किया।
सुरेंद्र कुमार ने कहा कि हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय दावा करता रहा है कि वह विकलांग जन अधिनियम 1995 के आधार पर 3 प्रतिशत आरक्षण का लाभ विकलांग विद्यार्थियों को देता रहा है। लेकिन यह पूरी तरह गलत साबित हुआ है। इस बार अर्थशास्त्र विभाग में एमए में 40 सीटों में से विकलांगों को एक सीट भी नहीं दी गई। सिरमौर के बीपीएल परिवार के शारीरिक विकलांग छात्र रविंदर ठाकुर इस कारण से दाखिले से वंचित रह गए।
उमंग फाउंडेशन की छात्रवृत्ति पर आकेएमवी कॉलेज से बीए करने वाली चंबा की दृष्टिबाधित छात्रा इंदु कुमारी को राजनीति विभाग में प्रवेश इसलिए नहीं मिल पाया क्योंकि उसमें एक सीट ही आरक्षित की गई। जबकि 5 प्रतिशत आरक्षण के तहत 40 विद्यार्थियों की कक्षा में दो सीटें आरक्षित की जानी थीं और वे विकलांगों की मेरिट सूची में दूसरे स्थान पर थीं। जोगिंदर नगर के दृष्टिबाधित विद्यार्थी जितेंद्र कुमार को विश्वविद्यालय कैंपस में बीएड में प्रवेश नहीं दिया गया और उन्हें धर्मशाला में दाहिला लेने को कहा गया।
कैंपस में बीएड की 100 सीटों में सिर्फ 2 सीटें ही विकलांगों के लिए आरक्षित की गईं जबकि होनी 5 चाहिए थीं। इसी तरह धर्मशाला के बीएड कॉलेज में 250 सीटों में 5 प्रतिशत आरक्षण देने पर 12 या 13 सीटें विकलांगों को मिलनी चाहिए थीं। जबकि सिर्फ 7 सीटें ही आरक्षित की गईं जिसके कारण कांगड़ा जिले का दृष्टिबाधित छात्र विजय कुमार प्रवेश से वंचित रह गया। सुरेंद्र कुमार ने बताया कि हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में होस्टलों में 5 प्रतिशत आरक्षण लागू न किए जाने से तीन दृष्टिबाधित विद्यार्थियों .एमए संगीत की छात्रा मुस्कान ठाकुर(चिड़गांव) एमए इतिहास की संगीता (कुल्लू) और एम राजनीति विज्ञान के विनोद शर्मा(सिरमौर) के समक्ष रहने का संकट खड़ा हो गया है। इन तीनो ने उमंग फाउंडेशन की पूर्ण छात्रवृत्ति पर शिमला से बीए पास किया था। उन्होंने कहा कि इसी तरह राज्य के महाविद्यालयों तथा अन्य विश्वविद्यालयों में भी विकलांग विद्यर्थियों को आरक्षण के कानूनी प्रावधान से वंचित किया गया।