शिमला (एमबीएम न्यूज): बेशक ही देश में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ के नारों पर करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन पुलिस महकमे में आज भी वहीं मानसिकता बरकरार है, जिसमें दशकों पहले यह समझा जाता था कि कोई बेटी पुलिस अधिकारी नहीं बन सकती।
प्रदेश में महिला पुलिस अधिकारी को अधीनस्थ कर्मचारियों द्वारा “Sir” कहकर संबोधित किया जाता है। बात सुनने में कुछ अटपटी लग सकती है, लेकिन इसके पीछे एक ठोस वजह छिपी है। इसी बात का पता लगाने के लिए एमबीएम न्यूज नेटवर्क ने तीन महिला आईपीएस अधिकारियों से बात की। नतीजा यह निकला, एक समय पहले तक इस बात की कल्पना नहीं की जा सकती थी कि कोई महिला भी पुलिस अधीक्षक हो सकती है। लिहाजा “Sir” बोलने का चलन चलता ही आ रहा है।
बेशक ही महिलाएं पुलिस अधिकारी बन गई हैं, लेकिन अधीनस्थ कर्मचारियों में “Sir” बोलने का चलन जारी है। हालांकि यह शब्द अब जनाब में तबदील हो रहा है, लेकिन संभवत: मैम या मैडम तक पहुंचने में वक्त लगेगा। खुद महिला पुलिस अधिकारियों को “Sir” शब्द से संबोधित किए जाने पर अटपटा नहीं लगता है। एक राय यह भी थी कि “Sir” शब्द में रौब होता है। लेकिन इस बात से महिला पुलिस अधिकारी इत्तफाक नहीं रखती हैं।
पढि़ए, राय…
सिरमौर में करीब दो साल से एसपी के पद पर तैनात युवा सौम्या सांबशिवन का कहना है कि यह बात कोई नहीं सोचता था कि महिलाएं इस पद पर बैठेंगी। पुरुषों को ही तैनाती मिलती थी। लिहाजा “Sir” शब्द का चलन जारी है। साफ तौर पर कहा कि सैल्यूट करते वक्त, जब अधीनस्थ कर्मचारी “Sir” बोलते हैं तो कुछ अटपटा नहीं लगता है। उनका यह भी कहना था कि अब यह शब्द जनाब में बदल रहा है। उन्होंने कहा कि इस पद पर रह कर कोई असमानता नहीं हो सकती।
छठी आईआरबी बटालियन में कमांडेंट के पद पर तैनात आईपीएस अधिकारी रानी बिंदू सचदेवा का कहना है कि करीब 20 साल पहले पुलिस महकमे में बतौर डीएसपी कैरियर शुरू किया था। उनका कहना था कि शुरू से ही अधीनस्थ कर्मचारी “Sir” शब्द का ही इस्तेमाल करते आए हैं। उन्होंने भी यही कहा कि पुलिस अधिकारी के तौर पर लिंग भेद के मायने नहीं हैं। अगर महिला खुद को महिला समझेगी तो पुलिस महकमे के ओहदों पर अपने कर्तव्यों का पालन करने में भी मुश्किल आ सकती है।
सोलन की पुलिस अधीक्षक अंजुम आरा का कहना है कि इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई “Sir” या फिर“Mam” कह रहा है, बल्कि कर्तव्य परायणता जरूरी है। उनका कहना था कि “Sir” शब्द के संबोधन पर कुछ भी अटपटा नहीं लगता है। उन्होंने कहा कि इस सोच को बदलने में कुछ वक्त लग सकता है।