नाहन : क्या आप विश्वास करेंगे कि डॉ. वाईएस परमार मेडिकल कॉलेज का प्रबंधन हर महीने लगभग 1 लाख 10 हज़ार का पानी पी रहा है। अगर 2016 से मार्च 2019 तक की बात की जाए तो पानी की खरीद पर लगभग 25 लाख की राशि खर्च दी गई। इस बात का खुलासा शहर की एक डीडीपी वेलफेयर सोसायटी द्वारा बमुश्किल आरटीआई द्वारा जुटाई गई जानकारी में हुआ है। हैरान कर देने वाली बात यह है कि प्रबंधन ने छात्रावास के साथ-साथ फैकेल्टी अकोमोडेशन के लिए मनचाही दरों पर निजी भवन लिया हुआ है।
प्रश्न इस बात पर पैदा होता है कि इस व्यवस्था में भी कॉलेज प्रबंधन द्वारा क्यों पानी की सप्लाई के अलावा बिजली बिलों का भुगतान अलग से किया जा रहा है। सोसायटी द्वारा पत्रकारवार्ता में इस बात का भी आरोप लगाया गया है कि जिस व्यक्ति को वाटर टैंकर की सप्लाई दी जा रही है, उसका रिश्तेदार मेडिकल कॉलेज में ही कार्यरत है। जांच की मांग करते हुए सोसायटी के पदाधिकारियों ने कहा कि हर महीने पानी की सप्लाई में बड़ा घोटाला हो रहा है। इसकी उच्च स्तरीय जांच होने की सूरत में दूध का दूध पानी का पानी हो सकता है।
आरटीआई के उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक मेडिकल प्रशासन द्वारा 2017 में 6 लाख 87 हजार का पानी खरीदा गया, जबकि 2018 में यह आंकड़ा बढ़कर 13 लाख 50 हजार के पास पहुंच गया। साल 2019 में औसतन हर महीने 1 लाख का पानी खरीदा जा रहा है। हालांकि आरटीआई में यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि कितने लाभार्थियों के पानी खरीदने के लिए इतनी बड़ी रकम खर्च की जा रही है। मगर मोटे अनुमान के मुताबिक ये आंकड़ा 200 के आस-पास ही होगा। क्योंकि छात्रावास व फैकल्टी के फ्लैट्स में इतनी ही संख्या हो सकती है। हॉस्टल के लिए ही इतना पानी खरीदा जा रहा है तो यह बात पक्का है कि केवल कागजों में ही पानी की सप्लाई ली जा रही है।
हैरान कर देने वाली बात यह भी है कि कॉलेज प्रबंधन द्वारा करीब 13 लाख रुपए की राशि का भुगतान किराए के लिए किया जा रहा है। संदेह इस बात पर भी पैदा हो रहा है कि पिछले 3 साल में क्यों प्रबंधन द्वारा अपने स्तर पर निर्माण पूरा नहीं किया गया। लिहाजा आशंका जाहिर की जा रही है कि जानबूझकर छात्रावास व फैकेल्टी अकोमेडेशन का निर्माण लंबित किया जा रहा है, ताकि बिल्डर को फायदा पहुंचाया जा सके। सोसायटी का यह भी आरोप है कि इस घोटाले में कई प्रभावशाली लोग भी शामिल हो सकते हैं। यही कारण है कि नमक में आटा डालकर इसे अंजाम दिया जा रहा है।
मेडिकल कॉलेज द्वारा इतने बड़े पैमाने पर पानी खरीदने के भुगतान से आईपीएच विभाग को भी तमाचा लग रहा है, क्योंकि विभाग द्वारा शहर में पानी की अतिरिक्त व्यवस्था होने का दावा किया था। सोसायटी के पदाधिकारियों का यह भी कहना है कि अगर इस मामले की उच्च स्तरीय जांच नहीं की जाती तो मजबूरन जनहित याचिका दायर करनी पड़ेगी। यह भी कहा गया कि अगर मेडिकल कॉलेज प्रबंधन चाहता तो अपने स्तर पर बोर भी करवा कर पानी हासिल कर सकता था।
बहरहाल आरटीआई में उपलब्ध आंकड़े बेहद ही चौंकाने वाले हैं, जिससे साफ़ जाहिर है कि प्रदेश सरकार को इस प्रक्रिया से लाखों का चुना लगा है। डीडीपी वेलफेयर संस्था के अध्यक्ष मनोज पटेल, उपाध्यक्ष दिनेश चौधरी, सुशील गोयल, माइकल डिसूजा, राजेंद्र बंसल व सुधीर रमौल ने कहा कि नाहन मेडिकल कॉलेज में वर्ष 2017-18 के दौरान कॉलेज के छात्रों को हॉस्टल में साढे पांच लाख रुपए का पानी सप्लाई किया गया।
वर्ष 2018-19 में 13 लाख 22 हजार रुपए का पानी सप्लाई किया गया, जिसकी उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि जिस व्यक्ति से भवन किराए पर लिए गए हैं, उसे ही प्रति माह 6500 रूपये प्रति छात्र मेस का भी भुगतान किया जा रहा है।