शिमला
वो, स्कूली समय में रोजाना 8 किलोमीटर पैदल चला करते थे, ताकि शिक्षा हासिल कर सकें। करीब 8 साल पहले मां का देहान्त हो गया तो गृहस्थ जीवन भी शुरू करना पड़ा। बेहद ही साधारण युवक ने प्रतियोगितात्मक परीक्षाओं के लिए सूबे के एक सुदूर गांव में तैयारी शुरू की। 2014 में एलाइड परीक्षा उत्तीर्ण कर जिला रोजगार अधिकारी बन गए। सामने सरकारी अधिकारी के साथ-साथ पारिवारिक जिम्मेदारी तो थी ही, साथ ही एक पिता की भूमिका भी शुरू हो चुकी थी। बावजूद इसके रामपुर उपमंडल की झगोरी पंचायत के रहने वाले मनमोहन सिंह ने एचएएस बनने की जिद नहीं छोड़ी थी।
अब ट्रेनिंग व प्रोबेशन पीरियड पूरा करने के बाद किन्नौर के भाबानगर में एक प्रशासनिक अधिकारी के तौर पर पहली पारी शुरू की है। चूंकि समूचे उपमंडल की कठिन भौगोलिक परिस्थितियों से बखूबी वाकिफ हैं, लिहाजा एक प्रशासनिक अधिकारी के तौर पर भी कुछ कर गुजरने को आतुर हैं। मृदुभाषी मनमोहन सिंह ने 32 साल की उम्र में एचएएस टॉपर बनने का गौरव हासिल किया था।
इससे पहले सरकारी अधिकारी के तौर पर लगभग तीन साल का अनुभव भी हासिल कर चुके थे। 2017 बैच के एचएएस टॉपर की सफलता कई मायनों में अलग थी। सुदूर इलाके में पाठन सामग्री को जुटाना भी काफी कठिन रहता था।
उधर एसडीएम के तौर पर पहली पारी शुरू करने पर एमबीएम न्यूज नेटवर्क से बातचीत में मनमोहन सिंह ने कहा कि निचार उपमंडल कठिन भौगोलिक परिस्थितियों में दूर-दूर तक फैला हुआ है। उन्होंने कहा कि गरीबों के उत्थान के लिए सरकार द्वारा चलाई योजनाओं को मजबूत तरीके से क्रियान्वित करने को पहली प्राथमिकता देंगे। साथ ही कहना था कि क्षेत्र में विद्युत परियोजनाएं बन रही हैं।
प्रभावितों को सही हक दिलवाना भी प्रमुखता में होगा। एसडीएम मनमोहन सिंह यह भी कहते हैं कि जल्द ही सेब सीजन शुरू हो जाएगा। लिहाजा, ट्रांसपोर्ट व्यवस्था को सुचारू रखने को प्राथमिकता देंगे। उल्लेखनीय है मनमोहन सिंह की सफलता में उनकी पत्नी सपना का भी अहम योगदान रहा है। एचएएस टॉपर बनने से पहले मनमोहन सिंह एक बेटी व एक बेटे के पिता भी बन गए थे।
कुल मिलाकर एचएएस टॉपर से समाज को कई अपेक्षाएं होंगी, जिसकी कसौटी पर भी अब मनमोहन सिंह को सफल होकर दिखाना होगा।