घुमारवीं: कारगिल युद्ध का नाम सुनते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं, क्योंकि इस साजिश के पीछे पाकिस्तान की घटिया हरकत आंखों के सामने आ जाती हैं। एक तरफ तो पाकिस्तान विश्व को शांति का संदेश दे रहा था, क्योंकि भारतवर्ष के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को पाकिस्तान बुलाया था। भारत-पाक के संबंध अच्छे करने के लिए बस की शुरुआत की थी। मगर पीठ पीछे पाकिस्तान की गद्दारी सामने आ गई।
1999 में कारगिल में हुई घुसपैठ का जवाब भारतीय सेना ने किस तरह दिया, यह तो सब जानते हैं। लेकिन इस युद्ध में कई मां-बाप ने अपने बेटे, बहनों ने भाई, बच्चों ने पिता और वीर नारियों ने अपने सुहाग वतन पर न्यौछावर कर दिए थे। प्रदेश व देश ने विक्रम बत्तरा, अनमोल कालिया व सौरभ कालिया जैसे महान वीर सपूतो को खो दिया था। इस युद्ध में हिमाचल के दो वीर सपूतों को सर्वोच्च सैनिक सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। जिनमे पालमपुर के विक्रम बत्रा को मरणोपरांत व बिलासपुर के रहने वाले राइफल मैन संजय क़ुमार को जीते जी परमवीर चक्र प्राप्त करने का सौभाग्य मिला।
कारगिल युद्ध के इस मंजर के गवाह हैं बिलासपुर के झंडूता के कलोल वकैण में 3 मार्च 1976 को जन्मे वीर सपूत सूबेदार संजय कुमार। संजय क़ुमार को कारगिल युद्ध में उनकी बहादुरी व अदम्य साहस के लिए सर्वोच्च सैनिक सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। जैक राइफ़ल में तैनात संजय कुमार को जीते जी परमवीर चक्र प्राप्त करने का गौरव हासिल हुआ। 5 जुलाई को मस्कोह वैली में एक पोस्ट पर कब्ज़ा करने के लिए 11 लोगों की टीम चोटी पर पहुंची थी, जिसमें में 8 गंभीर रूप से घायल हो चुके थे। दो जवान शहीद हो गए थे। संजय कुमार की पीठ और टांग पर दो गोलियां लगी थी।
दुश्मन पहाड़ पर बैठ कर हैवी मशीनगन से ताबड़तोड़ फायरिंग कर रहा था। जब संजय की एके-47 की गोलियां खत्म हो गई तो उन्होंने सोच लिया मरना तो है ही, इसलिए कुछ बेहतर करके मरना ठीक रहेगा। साहस जुटा कर संजय दुश्मनों से सीधे उलझ पड़े। पाकिस्तानियों के बंकर में जाकर उन्होंने मशीनगन की मैगजीन छीन कर हमला किया। इस दौरान उन्होंने बंकर में ग्रेनेड से हमला भी किया। आमने-सामने के युद्ध में संजय ने सबको मौत के घाट उतार दिया। इस तरह चुनौती बनी इस पोस्ट पर हिंदुस्तान का कब्जा हो गया।
सुरक्षा की दृष्टि से यह पोस्ट बहुत एहम थी, क्योंकि इस पोस्ट से लेह की और जाने वाले रास्ते पर पाकिस्तानी फ़ौज ने इंडियन फ़ौज की तमाम सप्लाई लाइनें काट दी थी। भयकंर युद्ध में खुद गंभीर घायल होने पर भी संजय ने अपने घायल साथियों को सुरक्षित जगह पर पहुँचाया। इस बहादुर सपूत को उनकी इस बहादुरी के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। आज भी 26 जुलाई को विजय दिवस के दिन भारत माता के वीर सपूतों को उनकी बहादुरी व अदम्य साहस के लिए याद किया जाता है।