एमबीएम न्यूज़/नाहन
सिरमौरी लाल व एनएसजी के ब्लैक कैट कमांडो विवेक ठाकुर ने विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को फ़तेह कर लिया है। विवेक ठाकुर ने बेस कैंप से 19 मई को चढ़ाई शुरू की थी। 22 मई की सुबह विवेक ने एवरेस्ट को सुबह 5:30 बजे के आसपास फतेह कर लिया। खास बात यह है कि विवेक के घर पर दोहरी खुशी आई है। 22 अप्रैल का दिन उनकी ज़िंदगी में बेहद महत्वपूर्ण था। इसी दिन कमांडो विवेक ठाकुर पिता भी बन गए हैं। पत्नी प्रियंका ने नाहन मेडिकल कॉलेज में एक बेटी को जन्म दिया। घर पर बेटी की किलकारी गूंजी मगर खुद माउंट एवरेस्ट को फ़तेह करने निकल चुके थे।
एनएसजी की दूसरी टीम वीरवार को बेस कैंप में लौट आई थी, इसमें ही विवेक शामिल थे। इसके बाद आज खुद एनएसजी के डीजी अपने जांबाज कमांडो से मिलने बेस कैंप पहुंच गए। ब्लैक कैट कमांडो विवेक जब तक अपने घर पहुंचेंगे तब तक उनकी बेटी दो महीने की हो चुकी होगी। यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि इससे पहले सिरमौर से किसी ने एवरेस्ट को फतह किया है या नहीं। लेकिन इतना जरूर है कि एस अभियान में विवेक के साथ दो अन्य हिमाचली भी शामिल थे।
पत्नी प्रियंका चौहान ने एमबीएम न्यूज नेटवर्क से बातचीत में कहा कि एनएसजी की टीम अप्रैल के पहले सप्ताह में एवरेस्ट को फ़तेह करने निकल गई थी। इसके बाद से उनकी विवेक से एक-दो बार ही बात हो पाई है। उन्होंने कहा कि एनएसजी के मुख्यालय के माध्यम से उन्हें जानकारी मिलती है। एक ग्रुप में एनएसजी के तमाम पर्वतारोहियों के परिवार जुड़े हुए हैं। उन्होंने कहा कि एवरेस्ट फतह करने के बाद हवाई मार्ग से 2 जून को टीम वापस लौटेगी। इसके बाद एनएसजी मुख्यालय में कार्यक्रमों में हिस्सा लेने के बाद ही विवेक घर पहुंच पाएंगे।
एनएसजी के जांबाज कमांडो विवेक ठाकुर में देशभक्ति का जज्बा बचपन से ही कूट-कूट कर भरा हुआ था। मूलतः श्री रेणुका जी के बडोन के रहने वाले विवेक नेशनल सिक्योरिटी गार्ड 17 सदस्य टीम में हिस्सा दिया, जिसे गृह मंत्रालय द्वारा माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई का टास्क दिया गया। एनएसजी की टीम लेफ्टिनेंट कर्नल जयप्रकाश के नेतृत्व में माउंट एवरेस्ट को फतह करने निकली थी। कमांडो विवेक ठाकुर ने बचपन से ही मुश्किलों का सामना किया है। छोटी सी उम्र में पिता गुमान सिंह के निधन के बाद विवेक पर कई चुनौतियां आ गई थी।
नवोदय में पढ़ाई पूरी करने के बाद नाहन डिग्री कॉलेज से बीएससी की शिक्षा हासिल की। पत्नी प्रियंका चौहान एनएसजी के प्राईमरी स्कूल में एक शिक्षिका के रूप में कार्यरत रही। प्रसूति के वजह से उन्हें इस्तीफा देकर वापस आना पड़ा। खास बात यह भी है कि महज 22 साल की उम्र में ही विवेक ने सीआईएसएफ में सब इंस्पेक्टर का पद हासिल कर लिया था। इसके बाद विवेक का एनएसजी में चयन हुआ था। वह गत वर्ष ही वह परिणय सूत्र में बंधे थे। एवरेस्ट को फ़तेह करने पर मां यशोदा देवी भी गौरवान्वित महसूस कर रही है। करीब चार साल से विवेक एनएसजी में बतौर ब्लैक कैट कमांडो कार्यरत हैं।
ऐसे बनते है ब्लैक कैट कमांडो
एनएसजी का गठन भारत की विभिन्न रक्षा बलों से विशिष्ट जवानों को छांटकर किया जाता है। एनएसजी में 53-55 प्रतिशत कमांडो सेना की पृष्ठभूमि से आते हैं,जबकि शेष का चयन अर्द्ध सैनिक बलों से होता है। इन कमांडोज की अधिकतम कार्य सेवा पांच साल तक होती है। एनएसजी कमांडोज हथियार और बिना हथियार के ट्रेनिंग दी जाती है। एनएसजी कमांडो को ब्लैक कैट कहा जाता है,क्योंकि वो हमेशा काले नकाब,काले कपड़े में नजर आते हैं। उनके सिर से लेकर पैर तक कपड़ों का रंग काला ही होता है। 90 दिन की कठिन ट्रेनिंग के पहले भी एक हफ्ते की ऐसी ट्रेनिंग होती है,जिसमें 15-20 फीसदी सैनिक अंतिम दौड़ तक पहुंचने में सफल होते हैं। अंतिम हिस्से में कमाडों को आग के गोले और गोलियों की बौछारों के बीच ट्रेनिंग दी जाती है। नेशनल सिक्योरिटी गार्ड( एनएसजी) का गठन 1984 में हुआ था। देश में आतंकवाद से निपटने के लिए कमांडो तैयार किए जाते हैं।
माउंट एवरेस्ट से जुड़ी बातें
माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने और उसकी ऊंचाई से तालमेल बिठाने में लोगों को लगभग 40 दिन लग जाते हैं। यहां हवा की रफ्तार 321 किलोमीटर प्रति घंटे तक पहुंच सकती है और यहां का तापमान -80 डिग्री फारेनहाइट तक जा सकता है। लगभग 280 लोग अब तक माउंट एवरेस्ट पर जान गंवा चुके हैं। यह 150 शरीरों की खुली कब्रगाह है। अब तक 4000 से अधिक लोग माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने की कोशिश कर चुके हैं। हर दस में से एक शख्स, जो इसकी ऊंचाई तक पहुंचता है, वो वापस बेस कैम्प तक नहीं पहुंच पाता।
साल 2014 में जब 7.8 तीव्रता का भूकंप आया था तो 16 लोग मारे गए और 61 लोग बुरी तरह घायल हुए। माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई के पूर्वोत्तर रिज रूट पर एक ग्रीन बूट नामक जगह है। यहां एक सेवांग पालजोर नामक इंडो-तिब्बत बॉर्डर फोर्स का सदस्य चढ़ाई के दौरान चल बसा था। उसने चढ़ाई के दौरान हरे जूते पहन रखे थे। यह पर्वत आज भी 4 मिलीमीटर प्रतिवर्ष की रफ्तार से बढ़ रहा है। यहां एक छोटा और डरावना जम्पिंग मकड़ा रहता है। यह 22,000 फीट की ऊंचाई पर देखा जा सकता है। आज इस पर्वत के आसपास लोगों द्वारा छोड़ा गया 50 टन से अधिक कचरा है।
जॉर्डन रोमेरो माउंट एवरेस्ट फतह करने वाले सबसे छोटे इंसान हैं, वे तब महज 13 वर्ष के थे। यूइचिरो मियूरा को दुनिया सबसे उम्रदराज के तौर पर जानती है, जिन्होंने एवरेस्ट फतह किया. वे तब 80 वर्ष के थे।