एमबीएम न्यूज/नाहन
गगन को छूने का हौंसला हो तो मुकाम क्यों नहीं हासिल किया जा सकता। कुदरत की इतनी ही इनायत काफी है कि जन्म लिया। जिंदगी एक चुनौती है, इसका सामना करने वाला सिकंदर ही कहलाता है। शहर के बाजार में 22 साल का विवेक मिट्टी से बने सामान को बेचता नजर आता है। भरी दोपहर में बेशक ही बाजार सुनसान हो जाए, लेकिन विवेक का हौंसला बरकरार रहता है।
आप यह जानकर हैरान होंगे कि 3 फुट ऊंचाई वाला विवेक किसी भी हाल में अपने माता-पिता पर बोझ नहीं है। जमा दो तक पढ़ाई कर चुके विवेक ने सरकारी योजनाओं के पीछे भागने की बजाय खुद को आत्मनिर्भर बना लिया है। बाजार में हर कोई विवेक के स्वभाव का दिवाना है। हालांकि विवेक एक कंप्यूटर इंजीनियर बनना चाहता था, लेकिन किस्मत को कुछ ओर ही मंजूर था। अपनी विकलांगता से कभी घबराया नहीं। मिट्टी का देसी फ्रिज समेत अन्य सामान लोगों को खूब भाता है।
एक सवाल पूछा गया, विवेक आपका सामान कुछ महंगा है तो मुस्कुराते हुए बोला कि ग्राहक तोल-मोल बहुत करते हैं। साथ ही बताया कि मेहनत बहुत ज्यादा है। विवेक का यह भी कहना था कि सरकार दिव्यांगों के लिए नौकरी में आरक्षण करती है, लेकिन उसने कोई खास प्रयास नहीं किया। अगर मिल जाती है तो स्वीकार करेगा, अन्यथा अपने काम में ही मुकाम हासिल करने की कोशिश कर रहा है।
उल्लेखनीय है कि 22 वर्षीय विवेक पैदाइश से ही दिव्यांग है, लेकिन हौंसला ऐसा है कि अच्छे-अच्छों को सबक दे दे। कड़कती धूप में चंद मिनट खड़ा होना मुश्किल हो जाता है, लेकिन विवेक कई घंटों तक मेहनत करने में जुटा रहता है। दिव्यांग विवेक के भाई-बहन सामान्य है। बड़ा भाई आशीष व छोटी बहन आकांक्षा अपनी पढ़ाई कर रहे हैं।
कुल मिलाकर समाज को एक सोच विकसित करनी होगी कि ऐसा हौंसला रखने वाले दिव्यांग युवक से कुछ न कुछ अवश्य खरीदें, ताकि उसका हौंसला बुलंद होता रहे। समाज के इस कदम से शायद विवेक एक ऐसा मुकाम पा ले, जब अन्य दिव्यांगों के साथ बेरोजगारों के लिए रोजगार के संसाधन जुटा ले।