शिमला (शैलेंद्र कालरा) : हिमाचल-उत्तराखंड ने टौंस नदी पर करीब 8 हजार करोड़ रुपए की लागत से किशाऊ बांध विद्युत परियोजना का सपना देख कर कदम भी आगे बढ़ा लिए हैं। इस परियोजना से 660 मैगावॉट बिजली का उत्पादन होना है। लेकिन एक सच्चाई को भुलाया जा रहा है कि इस नदी ने हिमाचल व उत्तराखंड की सीमाओं को तो बांटा है, लेकिन इस नदी के एक भी बूंद पानी से न तो सिंचाई हो पाई और न ही पेयजल उपलब्ध हो पाया।
ऐसी धारणा है कि यह नदी शापित है। इसका पानी हिमाचल में इस्तेमाल आज तक नहीं हुआ है। उत्तराखंड की सीमा में यह नदी रूपन व शूपन खड्डों से मिल कर बनती है। त्यूणी नामक स्थान पर यह नदी पब्बर में मिल जाती है। जनश्रुतियों में इस नदी को ‘तमसा’ नदी भी कहा जाता है। यह भी माना जाता है कि यमुना नदी ने टौंस को शाप दिया था कि उसका पानी कहीं पर भी इस्तेमाल नहीं होगा।
इस नदी के इतिहास को महाभारत में पांडवों के वनवास से भी जोड़ा जाता है। यह भी जनश्रुति है कि टौंस नदी पहले डाकपत्थर में जलाशा पीर पहुंची थी, इसी से नाराज यमुना ने उसे शाप दिया था। ऐसे में कहीं न कहीं लोग यह भी सोच रहे हैं कि हजारों करोड़ की इस परियोजना का निर्माण कैसे संभव हो पाएगा।
अलबत्ता इतना जरूर बताया जाता है कि टौंस नदी के पूरी तरह से उत्तराखंड में दाखिल होने के बाद अवश्य ही इस नदी पर कुछ सिंचाई योजनाएं बनी हैं। उत्तराखंड के जोनसार बाबर की पहाडिय़ों से निकलने वाली यह नदी हिमाचल में शिमला जिला के चौपाल उपमंडल के अलावा सिरमौर के शिलाई उपमंडल के क्षेत्रों को छू कर निकलती है। यही नदी दोनों राज्यों को आपस में बांटती है।
सदियों से इस नदी को लेकर माना जाता है कि इसका पानी जन उपयोग के काम नहीं आ सकता। हालांकि केवल एक अवधारणा भी हो सकती है क्योंकि शिमला व सिरमौर जिलों के जिन हिस्सों को यह उत्तराखंड से बांटती है, वहां की भौगोलिक परिस्थितियां भी जटिल है।
किशाऊ डैम की साइट रोहनाट उप तहसील में आती है। इसी क्षेत्र तक नदी का एक बूंद पानी भी कहीं इस्तेमाल नहीं हुआ है। प्रोजैक्ट साइट उत्तराखंड के जाने माने पर्यटन स्थल डाक पत्थर से उत्तर दिशा में 39 किलोमीटर है। उत्तराखंड के इछरी डैम से पहले यह साइट आती है।
क्या-क्या हैं सपने?
डैम के निर्माण से यह भी सपना देखा गया है कि इससे 97 हजार 76 हैक्टेयर भूमि सिंचित होगी। इसमें हिमाचल का हिस्सा कितना है, यह स्पष्ट नहीं है। इसके अलावा 660 मैगावॉट बिजली का उत्पादन होगा। इसकी सांझेदारी को लेकर हिमाचल व उत्तराखंड में एमओयू हो चुका है। बताते हैं कि इस परियोजना को केंद्रीय वन व पर्यावरण मंत्रालय से क्लीयरेंस की इंतजार है। ऐसा भी माना जा रहा है कि अगर इस परियोजना का निर्माण 2015 में शुरू होता है तो इसे पूरा होने में कम से कम आठ साल लगेंगे।
टौंस के बारे में ओर क्या हैं तथ्य?
इस नदी से रोहडू के समीप बहने वाली पब्बर नदी भी टौंस की ही सहायक नदी है। ऐसा भी बताया जाता है कि पब्बर व टौंस नदी में अगर कोई व्यक्ति डूब जाता है तो उसका शव तक नहीं मिल पाता है। इक्का-दुक्का मामलों में ही शव की बरामदगी हुई है। टौंस नदी हिमाचल-उत्तराखंड की सीमा पर यमुना से मिल जाती है। यह भी बताया जाता है कि यमुना से कहीं अधिक पानी टौंस में है।
यह बिलकुल सही है कि ऐसी जनश्रुति है कि तमसा नदी शापित है। इसका पानी कहीं पर भी इस्तेमाल नहीं होता है। डोडरा क्वार व उत्तरकाशी के क्षेत्रों से यह नदी निकलती है। हिमाचल में इसकी दूरी लगभग 60 किलोमीटर है। इस बात की भी चर्चा क्षेत्र में है कि शापित नदी पर बांध कैसे बन पाएगा। – उदय भारद्वाज, महासचिव किशाऊ बांध संघर्ष समिति