शैलेंद्र कालरा / शिमला
शायद आप विश्वास नहीं करेंगे, मगर यह हकीकत है कि माउंट एवरेस्ट की श्रृंखला पर एक हिमाचली लाल ने रेस्टोरेंट बनाकर बड़ा कारनामा कर दिखाया है। इसके लिए गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड ने भी संजय ठाकुर के नाम रिकॉर्ड दर्ज कर लिया है। मगर 31 वर्षीय हिमाचली लाल को अपने प्रदेश में पहचान नहीं मिल पाई है।
अब आप यह सोच रहे होंगे कि मूलत: कुफरी के रहने वाले संजय ठाकुर ने ऐसा क्यों किया तो जनाब मकसद खास था। 30 मई 2018 को एक दिन का रेस्टोरेंट चलाकर यह साबित कर दिया कि नेचर फ्रेंडली होकर भी कार्य किया जा सकता है। वापसी में एक जून को टीम सहित फंस गए थे। फिर भारतीय दूतावास की मदद से हेलीकॉप्टर के माध्यम से वापस काठमांडू पहुंचे। आप यह भी जानकर हैरान हो जाएंगे कि रेस्टारेंट चलाने के लिए दस सदस्यों की टीम ने 180 किलोग्राम सामान उठाकर 6 दिन नॉन स्टॉप यात्रा काठमांडू से की गई।
इस अभियान को ‘तिर्यग्योनि’ नाम दिया गया। आप यह भी जानकर दंग हो जाएंगे कि जिस जगह हिमाचली बेटे ने एक दिन का रेस्टोरेंट चलाया, उस जगह ऑक्सीजन का लैवल 40 प्रतिशत के आसपास ही होता है।
अहम बात यह भी है कि हिमाचली लाल को यह कारनामा करने के लिए कहीं से वित्तीय मदद नहीं मिली थी। बल्कि एक अरसे से अपने वेतन से ही बचत कर रहे थे। पूरे मिशन को कामयाब करने में संजय ने अपनी जेब से 15 लाख रुपए की जमा पूंजी खर्च की।
रेस्टोरेंट में क्या खास…
एक दिन के रेस्टोरेंट से 650 डॉलर की कमाई भी हुई, जिसे चैरिटी में दे दिया गया। रेस्टोरेंट में 8 कोर्स मेन्यू बनाया गया था। इसमें शेरपा एक्सप्रेस व तीन शाकाहारी कोर्स रखे गए। शराब नहीं परोसी गई। 11 लोगों को डिनर परोसा गया था। खास बात यह थी कि सौर ऊर्जा की मदद से पहाड़ों में मिलने वाली खाद्य सामग्री का इस्तेमाल किया गया। इसमें बिच्छू-बूटी की डिश भी शामिल थी।
खुद क्या बोले संजय ठाकुर
दुबई से विशेष बातचीत के दौरान संजय ठाकुर का कहना था कि टीम में 10 लोग शामिल थे। ईथियाड एयरवेज में बतौर शैफ काम करने वाले संजय का जुनून हिमालय में भू व पर्यावरण संरक्षण है। उन्होंने कहा कि इस सपने को साकार करने के लिए कुछ प्रोफैशनल एक्सपटर्स से भी राय ली गई। एक्सपर्ट रेगमी से संपर्क हुआ तो वो भी काफी खुश हुए। इसके बाद एवरेस्ट की पर्वत श्रृंखला आइसलेंड पर रेस्टोरेंट बनाने का फैसला लिया गया।
उनका कहना है कि फिर अपने सीनियर शैफ सुंदरा राजन से साथ चलने का आग्रह किया, जिस पर वो खुशी-खुशी राजी हो गए। उन्होंने कहा कि एक फ्रैंड कर्ण मलिक ने कहा कि यह तो वर्ल्ड रिकॉर्ड हो सकता है। इसके बाद गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड को संपर्क साधा गया। गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड की हरी झंडी मिलने के बाद चढाई शुरू की थी। 2 जून को ही सर्टिफिकेट हासिल हो गया। उनका कहना है कि रिकॉर्ड तोड़ा नहीं गया है, बल्कि बनाया गया है।
उन्होंने कहा कि एवरेस्ट की आइसलैंड पर्वत श्रृंखला पर रेस्टोरेंट खोलना अपने आप में एक खतरनाक कोशिश थी। लिहाजा इसके लिए ट्रेनिंग व जरूरी टिप्स लिए गए। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें अपने सीनियर शैफ सुंदरा राजन से काफी प्रोत्साहन मिला।
पढि़ए क्या था मकसद..
हिमाचली बेटा इस मिशन पर एक खास मकसद लेकर निकला था। दरअसल खुद फूड इंडस्ट्री में बतौर शैफ कार्यरत है, लिहाजा मन में एक विचार कौंध रहा था, क्यों न संसार को यह बताया जाए कि फाइन डाइनिंग पर भी प्राकृतिक संसाधनों से खाना परोसा जा सकता है, क्योंकि आज भी नेचर में ऐसे इनग्रिडिएंटस मौजूद हैं, जिनका इस्तेमाल नहीं हुआ है। मसलन, हिमाचल में पाए जाने वाली बिच्छू-बूटी। इसके अलावा पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी देना था। जब सौर ऊर्जा के इस्तेमाल से इतनी ऊंचाई पर भी खाना बनाया जा सकता है तो इस नैचुरल संसाधन का इस्तेमाल देश क्यों नहीं करता।
कुल मिलाकर बेटे की इस बड़ी कामयाबी से उनका अपना पैतृक प्रदेश ही अनजान था,जिसे अब आप तक एमबीएम न्यूज़ नेटवर्क ने पहुँचाया है।