मोक्ष शर्मा / नाहन
12 जून को अस्पताल से फरार होकर सनसनी फैलाने वाला कैदी लक्ष्मण पटेल साधारण शख्स नहीं है। जरूरत पडऩे पर सांप, बिच्छू व छिपकली तक को भी अपनी पेट की आग बुझाने के लिए खा सकता है। अस्पताल से फरार होने के वक्त लक्ष्मण की जेब में मात्र 10 रुपए थे। इसी के बूते अपने पैतृक शहर वाराणसी में करीब साढ़े 7 साल बाद लौटा था।
सुबह 7 बजे नहीं, बल्कि तडक़े 3 से 4 बजे के बीच ही फरार हुआ था। जेब के 10 रुपए भी कालाअंब तक ही खर्च हो गए थे। जंगलों में छिपने के दौरान भूख लगने पर पत्ते खाकर भूख मिटाई थी। शातिर बनने की कोशिश भी की थी। अंबाला की बजाय वाया अलीगढ़ की ट्रेन वाराणसी पहुंचने के लिए दिल्ली से पकड़ी थी। यह तमाम खुलासे खुद लक्ष्मण पटेल ने पुलिस की पूछताछ में किए हैं।
भागने के दो कारण…
सनसनीखेज बात यह भी है कि लक्ष्मण पटेल को यह लग रहा था कि जैसे उसके एक साथी की मौत जेल में हो गई है, कहीं उसकी भी मौत जेल में ही न हो जाए। फरार होकर अपने एक दोस्त से बदला लेना चाहता था। उसकी हत्या करने की फिराक में था। यह भी तय कर चुका था कि वाराणसी में कहां से देसी कट्टा खरीदा जाना है। हत्या के बाद भेष बदलकर जीवन यापन करने की योजना भी बना ली थी। आप यह जानकर हैरान हो जाएंगे कि अगर सिरमौर पुलिस उसे गिरफ्तार करने में दो या तीन दिन की देरी कर देती तो शायद अपने दोस्त का कत्ल कर चुका होता।
कैसी पहुंची पुलिस गिरेबान तक..
हर कोई यह भी जानना चाहता है कि जब शातिर कैदी मोबाइल का इस्तेमाल नहीं कर रहा था, किसी को फोन नहीं कर रहा था तो पुलिस उसके गिरेबान तक कैसे पहुंची। इसका जवाब एसपी रोहित मालपानी से ही मांगा गया। दरअसल 2011 में जब लक्ष्मण पटेल ने कत्ल किया था तो उस केस की पुलिस ने पूरी स्टडी की। जेलवात्र्ता के दौरान कैदी अपने घर पर वीडियो कॉन्फ्रैसिंग के जरिए बात करते हैं। यह पता लगाया गया कि लक्ष्मण पटेल किससे सबसे अधिक बात करता है। तब पुलिस को पता चला कि अपनी बड़ी बहन के सबसे अधिक करीब है। लिहाजा पुलिस ने लक्ष्मण पटेल के वाराणसी पहुंचने से पहले ही तेजतर्रार पांच पुलिस कर्मियों की टीम को बहन के घर के आसपास निगरानी के लिए तैनात कर दिया। पुलिस का तीर निशाने पर बैठा। बहन के घर पहुंचते ही दबोच लिया गया।
कैसे भागा..
पुलिस की जांच में यह बात सामने आई है कि जंगल के रास्ते से कालाअंब हाईवे पर पहुंचा। जहां से ट्रकों में लिफ्ट लेकर अंबाला पहुंच गया। एक रात जैसे-तैसे बिताने के बाद दिल्ली पहुंचा। यहां से वाया अलीगढ़ वाराणसी की ट्रेन पकड़ी। खास बात यह रही कि सफर के दौरान लक्ष्मण ने एक रुपया भी नहीं खर्चा। गौरतलब है कि नाहन से वाराणसी तक पहुंचने के लिए ट्रेन मेंं करीब 25 घंटे लगते हैं। लेकिन लक्ष्मण को 48 से 72 घंटे का समय लगा। पुलिस की टीम को 15 दिन तक वाराणसी में ही डेरा डालने के निर्देश भी मिले थे।
क्या कहते हैं एसपी…
एमबीएम न्यूज नेटवर्क से बातचीत में एसपी रोहित मालपानी ने माना कि हत्या के सजायाफ्ता कैदी ने इस बात को कबूला है कि वो कुछ भी खा सकता है। जंगलों में भी पेड़ों की पत्तियों को खाकर भूख मिटाई थी। एसपी ने यह भी माना कि फरारी के वक्त उसकी जेब में 10 रुपए थे। एसपी का कहना है कि पुलिस का पहला प्रयास यह होता है कि क्राइम को न होने दिया जाए। इस मामले में भी ऐसा ही हुआ है। अन्यथा वो एक और हत्या को अंजाम दे सकता था।