फागू (एसजे चौहान) : क्या आप जानते हैं कि सिरमौर का राजगढ़ उपमंडल आज के दिन (11 जून) क्यों सिहर उठता है। दरअसल यही वह दिन है, जब क्षेत्रवासियों पर रजवाड़ाशाही ने अंग्रेजी हुकूमत के इशारे पर निहत्थे पझौता आंदोलनकारियों पर जलियांवाला बाग की तर्ज पर अंधाधुंध गोलियां बरसा दी थी। इस गोलीबारी में कमनाराम शहीद हो गए थे जबकि दर्जनों लोग घायल हुए थे।
स्वतंत्रता सेनानी कल्याण समिति हाब्बन 11 जून के दिन को पझौता गोलीकांड दिवस के रूप में मनाती है। हालांकि यह दिवस अब चंद लोगों तक ही सिमट गया है, लेकिन लोग वह दिन भी नहीं भूलते जब 1942 में तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री राजेश पायलट ने नायक वैद्य सूरत सिंह के संघर्षपूर्ण जीवन पर डाक टिकट जारी करने की घोषणा की थी। उस समय लोग अंग्रेजी सत्ता से परेशान थे और भारतीय रियासतों के राजा अंग्रेजों की सहायता में जुटी थी।
इसके तहत किसानों पर कई तरह के टैक्स लगाए जाने थे जिनमें किसानों का अतिरिक्त अनाज सरकारी खजाने में जमा करवाना, ग्रामीणों के लिए सिविक गार्डों का प्रशिक्षण अनिवार्य, नकदी फसलों को सरकारी समितियों को बेहद मामूली भाव में बेचना आदि शामिल था। जबकि बेगार प्रथा तो क्षेत्र में पहले से ही थी।
इन्हीं के विरोध में क्षेत्र के किसानों ने किसान सभा का गठन किया, जो बाद में पझौता आंदोलन में तबदील हो गई और इसका मुखिया वैद्य सूरत सिंह को बनाया गया। उन्होंने सिरमौर के तत्कालीन राजा को स्वयं आकर ग्रामीणों की समस्याएं सुनने का आग्रह किया। लेकिन राजा सिरमौर की बजाए वजीर रामगोपाल पझौता के दौरे पर राजगढ़ गए। दरअसल उनका इरादा आंदोलन कर रहे लोगों में फूट डालने का था, जो सफल नहीं हो सका।
इसके पश्चात डीएसपी जगत सिंह को दलबल के साथ राजगढ़ भेजा गया। वहां आंदोलनरत ग्रामीणें ने डीएसपी की घेराबंदी कर दी, जिस पर डीएसपी ने अंग्रेजी सेना से सहायता ली और उन्होंने राजगढ़ को छावनी में तबदील कर दिया। इस दौरान वैद्य सूरत सिंह का मकान डाइनामाइट से उड़ा दिया गया।
11 जून को आंदोलनकारियों पर सेना ने उस वक्त गोलियां दागनी शुरू कर दी, जब वह उड़ाए गए मकान को देखने जा रहे थे। इस गोलीकांड में कमनाराम शहीद हो गए जबकि 69 आंदोलनकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया।
आंदोलनकारियों को पहले आजीवन कारावास हुआ, जबकि बाद में उनकी सजा 5 से 7 वर्षों में तबदील कर दी गई। जबकि कुछ आंदोलनकारियों को भारत को आजाद होने के बाद रिहा किया गया।