मंडी (वी कुमार) : एक टांग नहीं है, लेकिन भी फिर भी नाचता है। पर प्रशासन यह नहीं समझ पाता कि दिव्यांगों को मंच देना भी उसी का दायित्व है। नाराजगी भरी यह कहानी है मंडी के 20 वर्षीय सतीश कुमार की। सतीश को रंज है कि इस बार उसे अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव में अपनी प्रस्तुति देने का मौका नहीं दिया गया। परिवार ग़ुरबत का सामना कर रहा है लेकिन सतीश ने बचपन से ही किसी के आगे हाथ नहीं फैलाये, खुद को ही मजबूत किया है।
सात मील गांव निवासी सतीश ने मात्र 2 वर्ष की आयु में अपनी टांग खो दी। एक तेज रफ्तार ट्रक ने सतीश कुमार को जिंदगी भर का गम दे दिया। लेकिन सतीश ने हिम्मत नहीं हारी। आज सतीश भले ही गरीबी में अपनी जिंदगी जी रहा हो लेकिन हौंसले बुलंद हैं और इन्हीं के दम पर वह आगे बढ़ रहा है।
सतीश के पिता चाय की दुकान चलाते हैं जबकि माता मनरेगा में मजदूरी करती हैं। सतीश को पहले एक्टिंग करता था फिर उसके मन में डांसिंग का शौक भी जागा। नकली टांग के सहारे सतीश ने अपने इस शौक को न सिर्फ पूरा किया बल्कि कई मुकाम भी छुए। सतीश पिछले साल शिमला में हुए मिस्टर हिमालया के खिताब को अपने नाम कर चुका है। वहीं दिव्यांगों की नेशनल एथलेटिक्स में भी भाग ले चुका है। बड़ी बात यह है कि सतीश ने किसी से कोई ट्रेनिंग नहीं ली, जो कुछ भी सीखा यू टयूब पर वीडियो देखकर ही सीखा।
सतीश कुमार की इस कला की प्रशासन कद्र नहीं कर पाया। सतीश को मलाल है कि आज उसे मंडी के सबसे बड़े अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव में भाग लेने का मौका नहीं मिला। सतीश ने 22 जनवरी को ही जिला प्रशासन को एप्लीकेशन दे दी थी और ऑडिशन का भी इंतजार कर रहा था। बाद में पता चला कि डांसर के लिए कोई ऑडिशन नहीं और ऐसे लोगों की सिलेक्शन उनकी प्रोफाइल के आधार पर होगी।
शायद प्रशासन को इस हुनरबाज की प्रोफाइल रास नहीं आई और इसे अपनी प्रतिभा दिखाने का कोई मौका नहीं मिल सका। सतीश कुमार अभी वल्लभ कालेज मंडी से अपनी बीएससी की पढ़ाई पूरी कर रहा है। भविष्य में सतीश एक्टिंग और डांसिंग की दुनिया में नाम कमाना चाहता है, लेकिन इसके लिए उसे समाज के सहयोग की जरूरत रहेगी।