एमबीएम न्यूज / धर्मशाला
नूरपुर स्कूली बस हादसे की घटना ने हर किसी का दिल दहला कर रख दिया है। मौके पर मौजूद हरेक शख्स के रोंगटे खड़े थे और आंखें नम थी। चारों तरफ मासूमों के बिखरे अंग शायद यही सवाल पूछ रहे होंगे कि आखिर हमारा कसूर क्या था। हरेक हादसे की तरह इस बार भी मैजिस्ट्रियल जांच के आदेश दे दिए गए हैं।
चंद रोज तक मीडिया इस वारदात की याद दिलाता रहेगा, लेकिन फिर वही पुराने ढर्रे पर जिंदगी चलनी शुरू हो जाएगी। खूनी सडक़ों व तेज रफ्तार चालकों पर शिकंजा कसने के लिए सरकारी महकमों में कर्मचारियों की कमी का रोना शुरू हो जाएगा। जयराम ठाकुर के पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद यह पहला भीषण सडक़ हादसा है। हादसा भी ऐसा, जिसमें नन्हें बच्चों की जिंदगियां चली गई।
क्या सडक़ों को सुरक्षित करने के लिए सरकार ठोस कदम उठाएगी या फिर पुरानी पद्धति पर ही सबकुछ चलता रहेगा। हमेशा की तरह न्यायिक जांच, पीडि़तों को आर्थिक मदद देने की घोषणा की जा रही है। शोक व्यक्त करने का सिलसिला शाम से ही शुरू हो गया था। सूबे में निजी स्कूलों की बसों में बड़ा इजाफा हुआ है।
हालांकि पुख्ता तौर पर नहीं कहा जा सकता, लेकिन संभव है कि प्रदेश में स्कूली बच्चों के वाहन का यह सबसे बड़ा हादसा भी हो सकता है। 26 मासूमों की जान चली गई तो दो शिक्षकों सहित ड्राईवर भी मौत के आगोश में समा गया।
कुल मिलाकर बड़े-बड़े विकास के पीछे भाग कर राजनीतिक रोटियां सेंकने की बजाय प्रदेश की आवश्यकता सुरक्षित सडक़ों की होनी चाहिए, ताकि भविष्य में मासूमों की फिर जानें न जाए।
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