पांगी, 13 फरवरी : चंबा के जनजातीय क्षेत्र पांगी में 12 दिवसीय जुकारू उत्सव के तीसरे दिन पंगवाल समुदाय पुनेही उत्सव मनाया गया। इसी क्रम में 12 दिनों तक अलग-अलग त्यौहार मनाए जाते है। पांगी घाटी के लोगों ने प्राचीन परंपराएं जिंदा रखी हुई है। पर्व में परंपराओं और रीति रिवाजों का पालन किया जाता है। मान्यता के अनुसार लोगों ने आटे के बकरे बनाकर सुबह खेत में चिन्हित स्थान पर एकजुट होते हैं, जहां पर धरती माता की पूजा की जाती है। पूजा के दौरान हल भी चलाई जाती है।
इससे पूर्व खेतों में पत्थर की शिला की विधि विधान से पूजा–अर्चना कर गेहूं की बिजाई की। मान्यता है कि 20 दिन के बाद अंकुरित होने वाले गेहूं के आधार पर ही पता चलेगा कि यह वर्ष फसल के लहजे से धन्य-धान्य रहेगा या सूखे की स्थिति उत्पन्न होगी।अगर निर्धारित समय में फसल अंकुरित हो जाती है तो इसे अच्छी पैदावार का प्रतीक माना जाता है। अगर ऐसा नहीं होता है तो इसे सूखे की स्थिति बताया जाता है।
इस पर्व के दौरान प्रतिदिन क्रमवार लोगों के घरों में धाम का आयोजन होता है। जहां लोग एक-दूसरे के घरों में जाकर विभिन्न पकवानों का आनंद उठाते हैं। भोज के दौरान सत्तू, काजू, बादाम का सेवन करते हैं। इसके अलावा अब कई लोग भोज में मटर–पनीर, चिकन, मटन भी बनाते हैं। वहीं पुनेही समाप्त होने के बाद देर शाम को हर गांव में घुरेई नृत्य का भी आयोजन किया जाता है। यह घुरेई नृत्य 12 दिनों तक चलता है।
धुरेई नृत्य के दौरान गांव वासी एकजुट होकर घर की छत पर घुरेई नृत्य करते हैं। मिंधल माता के ठाठड़ी करतार सिंह ने बताया कि इस बार पांगी वासियों पर बालिराज काफी मेहरबान हैं। उन्होंने बताया कि कभी पांगी का जुकारू बिना बर्फ का नहीं हुआ था। लेकिन इस बार बर्फ न होने के कारण क्षेत्र के लोगों में काफी मायूसी छाई हुई थी। लेकिन जैसे ही बलि राजा का त्यौहार नजदीक आया तो बर्फबारी हुृई है। जमकर बर्फबारी होने से पांगी वासी खुश है और इसे राजा बलि का वरदान मान रहे हैं।