नाहन : डॉ. वाईएस परमार मेडिकल कॉलेज में शिशुरोग विभागाध्यक्ष डॉ. श्याम लाल कौशिक के नेतृत्व में चाईल्ड स्पेशलिस्ट चिकित्सकों की टीम ने इतिहास बनाया है। अहम बात यह है कि पीजीआई के अनुभवी डॉ. पवन के अलावा शहर की बेटी डॉ. सूर्या सैनी इस इतिहास के अहम किरदार बने हैं। आने वाले वक्त में जब यह पूछा जाएगा कि मेडिकल कॉलेज में डबल वॉल्यूम एक्सचेंज ट्रांसफ्यूजन की सुविधा का पहला केस कौन सा है, तो लाजमी तौर पर इसी टीम का नाम आएगा।
दरअसल 17 दिन पहले धारटीधार के तिरमली की रहने वाली सलोचना पत्नी कुलदीप सिंह ने जुड़वां बच्चों को जन्म दिया। इसमें एक बेटा व एक बेटी की किलकारी गूंजी थी। मगर इसी बीच बेटे के पीलिया का स्तर 25 तक पहुंच गया। इसके बाद शिशुरोग विशेषज्ञों के सामने दो विकल्प थे। पहला यह कि कोई रिस्क न लेकर पीजीआई चंडीगढ़ रैफर कर दिया जाए। दूसरा यह कि आर्थिक रूप से कमजोर परिवार को इम्दाद दी जा सके। कहते हैं, ईमानदारी व निष्ठा से अगर कोशिश करने की ठान ली जाए तो सफलता मिलती है।
विभागाध्यक्ष डॉ. श्याम लाल कौशिक ने भी अपनी टीम के जुनून को भांप लिया। तुरंत ही हाई रिस्क पर मासूम को नव जीवन देने को हरी झंडी दे दी। टीम ने नवजात का रक्त परिवर्तित करने का फैसला ले लिया। बी नैगेटिव ब्लड को एक तरफ से चढ़ाया जा रहा था तो दूसरी तरफ से मासूम का रक्त निकाला जा रहा था। मामूली सी चूक महंगी पड़ सकती थी, क्योंकि अब भी मेडिकल कॉलेज को एडवांस तकनीक की तमाम सुविधाओं की दरकार है।
नवजात के माता-पिता को भी शिशुरोग विशेषज्ञों की काबलियत पर पूरा भरोसा था। इसी भरोसे की कसौटी पर खरा उतरते हुए शिशुरोग विशेषज्ञों की टीम में शामिल डॉ. पवन व डॉ. सूर्या सैनी ने शनिवार शाम 6ः30 से 8 बजे के बीच इतिहास बना दिया। शिशुरोग विभागाध्यक्ष डॉ. श्याम लाल कौशिक का कहना था कि अब तक यह सुविधा शिमला व टांडा मेडिकल कॉलेज में ही थी।
इस कारण भी था हाईरिस्क….
अगर नवजात को उच्च स्तर का पीलिया होता है तो उस सूरत में तत्काल ही रक्त का बदलाव किया जाता है। इसके लिए नाल के माध्यम से रक्त का प्रवाह किया जाता है। लेकिन इस मामले में स्थिति भिन्न थी। चूंकि मासूम 17 दिन का हो चुका था, लिहाजा नाल नहीं थी। टीम के सामने केवल नस के माध्यम से ही उपचार संभव था। अमूमन इस तरह का जोखिम बड़े स्वास्थ्य संस्थानों में ही लिया जाता है। यहां तक की निजी क्षेत्र में तो अधिकतर मर्तबा इंकार भी कर दिया जाता है।
क्या हो सकता था…
वरिष्ठ शिशुरोग विशेषज्ञ डॉ. पवन कुमार का कहना है कि अगर नवजात को हाई लैवल पर पीलिया होता है तो इसका असर सीधा दिमाग पर पड़ता है। नतीजा यह हो सकता है कि बच्चा मानसिक तौर पर विकलांग हो जाए। इसके अलावा सुनने में भी दिक्कत आ सकती है। उनका यह भी कहना था कि इसके अलावा भी कई अन्य परेशानियां सामने आने की संभावना रहती हैं।
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