नाहन: मौजूदा पीढ़ी शायद ही एक जांबाज स्वतंत्रता सेनानी की बहादुरी से वाकिफ होगी। 15 दिसंबर 1996 को संसार को अलविदा कहने वाले कर्नल शेरजंग आजादी की लड़ाई में एक ऐसे जांबाज थे, जिन्होंने लुधियाना के समीप अहमदगढ़ में ट्रेन को रोकने के बाद इसे लूट लिया था, क्योंकि आजादी की लड़ाई में धन की कमी आड़े आ रही थी।
ब्रिटिश हुकूमत इस कदर गुस्साई थी कि देश के हरेक शहर में पोस्टर चस्पा कर उस भारतीय की तलाश में सघन्य अभियान शुरू किया था, जिसने ट्रेन को लूटा था। सिरमौरी लाल ने ट्रेन की लूट इस कारण की थी, क्योंकि इससे हथियार खरीदकर लाहौर जेल में बंद शहीद भगत सिंह व साथियों को आजाद करवाना था। सुराग न मिलने पर ट्रेन लूटने वाले की सूचना देने पर ब्रिटिश हुकूमत ने शेरजंग पर 30 हजार रुपए का ईनाम भी रखा था। बाद में अपने पिता के आदेश पर शेरजंग पुलिस के सामने आ गए थे।
ट्रेन लूटने के जुर्म में शेरजंग को फांसी की सजा के आदेश दिए गए थे, जिसे बाद में आजीवन कारावास में बदला गया। उन्होंने 14 साल जेल में बिताए। शेरजंग ने दिल्ली में रिफ्यूजी कैंप भी चलाए, जिसकी प्रशंसा तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भी की। नाहन में चौधरी प्रताप सिंह के घर 27 नवंबर 1906 को जन्में शेरजंग ने चौथी कक्षा में इस कारण स्कूल छोड़ दिया था, क्योंकि टीचर ने बदसलूकी की थी। एक जांबाज हीरो की तरह बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। मात्र 14 साल की उम्र में आदमखोर टाईगर को मार गिराया था। टयूटर ने शेरजंग को फ्रांस की क्रांति के बारे में भी पढ़ाया।
इसके बाद शेरजंग ने हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन को ज्वाइन कर लिया। इसमें सरदार भगत सिंह, भगवती चरण वोहरा व चंद्रशेखर आजाद भी एसोसिएट थे। 27 नवंबर 2019 को शिमला में स्वतंत्रता सेनानी शेरजंग की पुण्यतिथि पर हिमाचल पीपल्स प्रोग्रेसिव ग्रुप ने एक कार्यक्रम आयोजित किया। इस कार्यक्रम में मुख्य तौर पर यह मांग उठी कि ऐसे जांबाज सिपाही की प्रतिमा को उनके जन्मस्थान में स्थापित किया जाना चाहिए। इस बाबत 2016 से पत्राचार चल रहा है। कुल मिलाकर एक ऐसे सिपाही की दास्तां अगली पीढि़यों तक पहुंचनी चाहिए, यह सुनिश्चित होना चाहिए।
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