एमबीएम न्यूज़/शिमला
हिमाचल प्रदेश पथ परिवहन निगम ने बसों की इंश्योरेंस को लेकर स्थिति स्पष्ट की है। इसके मुताबिक बसों को इंश्योरेंस को लेकर छूट हासिल है। हादसे की सूरत में घायलों व मृतकों को एक फंड के तहत मुआवजा देने का प्रावधान होता है। जिसको यात्रियों से वसूले जाने वाले किराए में ही एकत्रित करने का प्रावधान रखा जाता है। सवाल इस बात पर उठता है कि जब इस तरह का प्रावधान है तो केंद्रीय मंत्रालय की वेबसाइट पर यह क्यों दर्शाया गया है कि बस की इंश्योरेंस 3 जून तक थी। इसकी बजाए यहां नॉन एप्लीकेबल शब्दों का इस्तेमाल कॉलम में किया जाना चाहिए। ताकि ऑनलाइन वाहनों की फिटनेस व इंश्योरेंस को लेकर कोई असमंजस पैदा ना हो।
उल्लेखनीय है कि केंद्रीय मंत्रालय की साइट पर वाहन का नंबर लिखे जाने पर वाहन से जुड़ी पूरी जानकारी स्क्रीन पर डिस्प्ले हो जाती है। शिमला हादसे के बाद भी ऐसा ही हुआ। लोगों ने बस की फिटनेस इंश्योरेंस के अलावा अन्य रिकॉर्ड खंगालना शुरू कर दिया। इसी के बाद यह बात सोशल मीडिया में भी प्रचारित हुई कि बस का इंश्योरेंस नहीं था। प्रश्न इस बात पर भी है कि क्या प्रबंधन द्वारा बसों में सफर करने वाले यात्रियों को जानकारी उपलब्ध करवाने के लिए डिस्पले बोर्ड का इस्तेमाल करता है या नहीं।
एमबीएम न्यूज नेटवर्क ने भी यह खबर प्रकाशित की थी कि बस की फिटनेस मई 2020 तक है, जबकि इंश्योरेंस के कॉलम में 3 जून लिखा गया था। दरअसल बात यह है कि शिमला बस हादसे के बाद प्रबंधन ने पल्ला झाड़ने की कोशिश तो कर ली, लेकिन अहम बात यह भी है कि बस 10 साल पुरानी है। यह अलग बात है कि फिटनेस का 1 साल बचा हुआ है। हादसे ने बस पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गई है। यानि अब इंश्योरेंस कंपनी से निगम को भी इसकी एवज में कोई मुआवजा नहीं मिलेगा।