एमबीएम न्यूज/नाहन
निजी क्षेत्र में शहर के निजी साईं अस्पताल में अब उत्तर भारत के नामी कंसलटेंट नेफरोलॉजिस्ट डॉ. अजय गोयल की सेवाएं भी मिलेंगी। छोटे से कस्बे का यह सौभाग्य ही होगा, जब रोगी देश के नामी नेफरोलॉजिस्ट डॉ. गोयल से सीधा संवाद कर सकेंगे। उल्लेखनीय है कि नेफरोलॉजी के क्षेत्र में डॉ. गोयल किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। पहाड़ी कस्बे में डॉ. गोयल की सेवाएं उनकी प्रोफेशन के प्रति जज्बे व लग्न की तस्वीर पेश करती है।
एमबीएम न्यूज नेटवर्क ने शुक्रवार को डॉ. गोयल से सीधी बातचीत की। डॉ. गोयल ने राजस्थान के जोधपुर से एमबीबीएस के बाद एमएस की डिग्री लेने के पश्चात पीजीआई चंडीगढ़ से नेफरोलॉजी में सुपर स्पेशलाइजेशन किया। इसके बाद लगभग 10 साल से ज्यादा पीजीआई के नेफरोलॉजी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में सेवाएं दी। अब उनकी सेवाओं का लाभ नाहन के लोगों को भी मिल रहा है। उनका कहना है कि डॉ. दिनेश बेदी का नाहन के प्रति लगाव अच्छे-अच्छे सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टरों को नाहन खींच लाया। डॉ. बेदी नाहन के लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं देने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं।
क्या है नेफरोलॉजी…
किडनी के अलावा किडनी स्टोन, यूरिनरी ट्रैक से संबंधित लाइलाज बीमारियों का उपचार नेफरोलॉजिस्ट करते हैं। डायलिसिस के अलावा किडनी रोगों से जुडे़ मरीजों को बेहतर से बेहतर मेडिसन से नेफरोलॉजिस्ट निदान करते हैं।
रोगियों को क्या देते हैं सलाह….
डॉ. अजय गोयल ने बताया कि हर व्यक्ति को रोजाना दो लीटर पानी पीना जरूरी है। यदि किडनी या पेशाब से संबंधित कोई बीमारी है तो पानी की मात्रा अढ़ाई लीटर के करीब होनी चाहिए। पोटाशियम बढ़ने पर केला व संतरा जैसे फल नहीं खाने चाहिए। इसके साथ-साथ किडनी रोगों से बचने के लिए हाई प्रोटीन डाइट जैसे मीट, राजमाह, चने अधिक मात्रा में नहीं खाने चाहिए। किडनी स्टोन के ज्यादातर मामले उष्ण स्थानों पर अधिक मिलते हैं। पानी में कैल्शियम की अधिक मात्रा का किडनी स्टोन बढ़ाने में ज्यादा रोल नहीं होता है। दर्द निवारक दवाओं का अधिक सेवन भी किडनी से जुड़ी बीमारियों को जन्म देता है।
पीजीआई में मिलती है तारीख पे तारीख…
किडनी रोगों से जूझ रहे रोगियों को पीजीआई में उपचार के लिए लंबे समय इंतजार करना पड़ता है। यहां पैथोलॉजी विभाग में ही टैस्ट करवाने में एक साल से ज्यादा अवधि व्यतीत हो जाती है। साईं अस्पताल में किडनी रोगों के लिए हर प्रकार के पैथालॉजिकल टैस्ट के अलावा अल्ट्रा साउंड, कलर डोल्पर टैस्ट, सिटी स्कैन जैसी सुविधाओं से एक सप्ताह के भीतर रोगी को इलाज मिलना प्रारंभ हो जाता है। इससे जहां मरीज को समय से इलाज मिलता है, वहीं मानसिक अवसाद व पीजीआई के धक्के खाने से भी निजात मिलती है।
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