कूल्लू (एमबीएम न्यूज़) : हिमाचल की संस्कृति को बचाए रखने के लिए प्रसिद्ध हिमाचली संगीतकार एसडी कश्यप पिछले 25 सालों से काम कर रहे है और इसी कार्य में जंजैहली के हिमाचली लोकगायक लीलाधर चौहान भी पिछले दस सालों से हिमाचली पहाडी गीतों के माध्यम से हिमाचली कला को पहचान देने में लगे है।
लोकगायक लीलाधर चौहान ने जानकारी देते हुए बताया कि उन्होने इस वर्ष दो नये गीत सांउड आफ मांउन्टेन स्टूडियों पनारसा में बनाए, जिसमें हिमाचल के प्रसिद्ध संगीतकार एसडी कश्यप ने संगीतबद्ध किया है और सहयोगी संगीतकार तेजेन्द्र नेगी ने भी संगीत दिया है। एक कुण बुझला दिले री दाह, जो हिमाचल के कूल्लू की संस्कृति पर विशेष रूप से बनाया गया तथा दुसरा गीत बेटी अनमोल पर, तुमसे क्या मांगें बिटिया, बनाया है जिन्हें कुछ ही दिनों में रिलीज किया जा रहा है।
उन्होने बताया कि पहाड का प्राकृतिक सौदर्य कल-कल बहती जलधाराएं वाद्ययन्त्रों संग निकलती सुर लहरियां, मेले त्यौहार हिमाचल प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत है। पहाडों में गूंजता संगीत पहाड के मेलों त्यौहारों की जान है। यही वजह है कि फिल्मी दुनिया से लेकर विदेशी मंचों तक हिमाचली संगीत खूब धूम मचा रहा है। हैरानी की बात है कि ग्रामीण अंचलों में संगीत को नये आयाम देती प्रतिभाएं अपनी उपेक्षा से आहत दिखाई देती है।
संस्कृति कला के संरक्षण संबर्द्धन की दिशा मे उदासीनता कहे या फिर राजनीतिक हस्तक्षेप लेकिन हकीकत यही हे कि पहाड की युवा प्रतिभाओं को मंच हासिल करने के लिए खासी जदोजहद करनी पड रही है। हिमाचली लोकगायक लीलाधर चौहान का कहना है कि हिमाचल के मेले हमारी संस्कृति की धरोहर हैं लेकिन ताज्जुव की बात है कि प्रदेश में स्थानीय स्तर से राष्ट्रिय स्तर तक मनाए जाने वाले मेले त्यौहारों को पश्चिमी रंग में रंगने वाले अदाकारों पर पैसा पानी की तरह बहाया जाता है जबकि हिमाचली कलाकारों पर अंश मात्र खर्च किया जाता है।
बेहतर होता मेलों के आयोजक अपनी संस्कृति का सम्मान करते हुए स्थानीय हिमाचली कलाकारों को ज्यादा मौका देते। कई मेलों में कलाकारों को मामूली सा पारिश्रमिक मिलता है जबकि अपनी जेबे भरने में बिचौलिए सफल रहते है। प्रदेश में मेलों के एतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को बनाए रखने के लिए स्थानीय हिमाचली कलाकारों को प्रोत्साहित करना बेहद जरूरी है।
प्रदेश के मशहूर लोकगायक ठाकुर दास राठी, कुल्दीप शर्मा, किशन वर्मा, कला चौहान सहित दर्जनों कलाकारों का भी यही कहना है कि बाहर से आए कलाकारों की अपेक्षा स्थानीय कलाकारों को अवसर प्रदान किए जाने चाहिए। मण्डी जिला के सराज क्षेत्र के उपमंडल जंजैहली के हिमाचली लोकगायक लीलाधर चौहान ने जिलाधीश मण्डी, प्रदेश के मुख्यमन्त्री, भाषा कला संस्कृति विभाग को पत्र लिखकर गुहार की है कि प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में मनाए जाने वाले विभिन्न मेलों में स्थानीय हिमाचली कलाकारों को प्राथमिकता दिए जाने की मांग की है, ताकि पहाड का हुनर दम तोडने की बजाए शिखर की ओर बढे।