घडिय़ां
अपनी घड़ी देखिए जनाब,
जितनी देर मुझे यह बात कहने में लगी
उतने में तीन सौ हत्याएं हो गई
छह सौ बलात्कार
और बारह सौ अपहरण
इसी बीच भुखमरी से मर गए चौबीस सौ लोग
और घडिय़ों के चेहरों पर शिकन तक नहीं
वे क्या बताएंगी, आपको वक्त के बारे में
गणित में इतनी कमजोर
कि बारह के आगे की गिनती नहीं जानती
तोता चश्म होती है घडिय़ां
अच्छी कलाईयों पर
अच्छे कामों का वक्त बताती हैं
और बुरी कलाईयों पर बुरे कामों का
गरीब कलाईयों वाली घडिय़ां
लखनऊ से दिल्ली जाने का वक्त दस घंटे बताती हैं
जबकि अमीर कलाईयों वाली बताती हैं
महज पैंतालिस मिनिट की उड़ान
वे होती है संवेदनहीन
जरा उनके निर्विकार चेहरों को देखिए
और सदन में भ्रष्टाचार की बहस पर
प्रधानमंत्री के चेहरे को याद करिए,
घडिय़ों के वक्त से चलना बंद करिये
उन्हें अपने वक्त से चलाईये,
इतिहास में देखिये
क्या किसी वैज्ञानिक ने कभी घड़ी देखकर की
कोई नई खोज
किसी सिकन्दर ने घड़ी देखकर लड़ा कोई युद्ध
संकट के समय तो
कोई बेवकूफ भी घड़ी नहीं देखता
अपने दिल पर हाथ रखकर सुनिये
अपनी घड़ी की टिक-टिक
कहीं वह तेज या धीरे तो नहीं चलने लगी,
तेज घडिय़ां बहुत अच्छी होती हैं
वे चीखती हैं जल्दी करो, जल्दी करो
वक्त नहीं बचा
और वक्त से पहले ही काम खत्म करवा देती हैं
सुस्त घडिय़ां तो और अच्छी
वे धीरज बंधाए रखती हैं, और
बचाए रखती हैं हड़बड़ी से
कहती हुई कि अरे अब भी वक्त है
शुरूआत तो करो
देखिए
अपने देश के पचपन करोड़ कुपोषित बच्चों को
उनके चेहरे बता रहे हैं उनका वक्त
उनके चेहरों की झुर्रियां घड़ी हैं
उनकी बुझी हुई आंखें घड़ी हैं
उनके धंसे हुये पेट घड़ी हैं
उनकी उभरी हुई घडिय़ां घड़ी हैं
हर घड़ी में एक घुंडी होती है
जिसे घुमाकर उसका वक्त
आगे-पीछे किया जा सकता है
फौरन पता करिये
कि आपकी घुंडी किसके हाथों में है
कविताओं में वक्त बर्बाद मत करिये
मेरी शक्ल क्या देख रहे हैं
अपनी घड़ी देखिए जनाब।
कवि-नरेश सक्सेना, विवेक खंड-2/5, गोमती नगर, लखनऊ-226010, मो. 09450390241
प्रकाशित- विपाशा अंक ( मार्च-अगस्त 2010)