अपनी-अपनी किस्मत
किसी गांव में एक गरीब किसान रहता था। यद्यपि वो किसान है इसलिए स्वभाविक है वह खेती बाड़ी करता था। अन्न उपजाता था और उस अन्न को बेचकर अपना जीवन-यापन किया करता था। आहिस्ता-आहिस्ता कड़ी मेहनत व लगन के दम पर उसने अपने खेत के एक कोने में ही घास-फूस की झोंपड़ी बना ली। जैसा कि आमतौर पर होता है उस घास-फूस की झोंपड़ी की छत पर उन्ही घास-फूस के तिनकों से एक चिडिय़ा ने अपना घोंसला बना लिया।
इसे किसान की मेहनत का फल कहें, सरकार के किसानों के समर्थन उठाए गए कदमों का फल या किसान की किस्मत कि उसके अच्छे दिन आ गये थे। उसके खेतों में अच्छी पैदावार होनी शुरू हो गई। देखते ही देखते कुछ ही वर्षो में किसान एक आम किसान से अच्छा-खासा जमींदार बन गया। उसके खेत के एक कोने में अपना बंगला बना लिया और झोंपड़ी छोड़ उसमें रहने लगा।
इसे किसान की पुरानी यादों का मोह कहें कि उसने झोंपड़ी को जस का तस रहने दिया। हां- एक बात और हर हिन्दुस्तानी की तरह वह किसान भी परमात्मा में विश्वास करता था। तरक्की ने परमात्मा के प्रति उसके विश्वास को और बढ़ा दिया था। अब अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा दान-पुण्य के साथ-साथ सत्संग आदि पर खर्च करने लगा। वक्त तेज रफ्तार से आगे बढ़ता गया। किसान की तरक्की जारी रही।
शीघ्र ही उसके बंगले ने आलीशान बंगले का रूप ले लिया। हर कोई उसके बंगले की तारीफ करता। साथ ही उसे झोंपड़ी हटा देने की सलाह भी देता। लोग कहते कि इस झोंपड़ी के कारण उसके बंगले की सुंदरता समाप्त हो रही है। पहले-पहले तो किसान उनकी इस बात को सुना-अनसुना कर देता लेकिन बाद में उसे लगने लगा कि लोगों की बातों में दम है। अत: उसने झोंपड़ी को वहां से हटवा दिया। झोंपड़ी का हटना था कि उस झोंपड़ी में अपना आशियाना बनाए बैठी चिडिय़ा भी अपने परिवार संग नये ठिकाने की तलाश में निकल पड़ी।
वक्त अपनी रफतार से आगे बढ़ता रहा। कभी बाढ-कभी सूखा। कभी वक्त से पहले तो कभी वक्त के बाद हुई बारिश ने किसान की कमर तोड़ दी। खेतों में होने वाली पैदावार लगातार घटती चली गई। एक दिन वो भी आया जब किसान को अपना ऐश्वय छीनता महसूस हुआ। जैसा कि आमतौर पर होता है इंसान को दुख हो तो उसे भगवान का ही सहारा नजर आता है।
किसान भी दुखी होकर मंदिर में पहुंच गया और भगवान की मूर्ती के सामने गिड़गिड़ाने लगा। बोला- हे, परमात्मा। पहले मैं कोई दान-पुण्य नहीं करता था। कभी-कभार ही मंदिर जाया करता था। कभी सत्संग नहीं करता था। फिर भी मैं तरक्की पर तरक्की करता चला गया। आज मैंने अपने बंगले में ही आपका मंदिर बना रखा है। दिन-रात पूजा-अचर्ना करता हूं। फिर भी मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है। मेरा ऐशो-आराम क्यों छिना जा रहा है। अगर आपका यह ऐशो-आराम आपने छीनना ही था तो मुझे दिया ही क्यों था।
कहते है उसी समय परमात्मा वहां प्रकट हुये और वे किसान से बोले- भक्त, अगर तुम मंदिर बनवा रहे हो, दान-पुण्य कर रहे हो तो उससे तुम्हारें मन को असीम शांति प्राप्त होती है। इस ऐशो-आराम और तरक्की का उससे कुछ लेना-देना नहीं है। रही बात तुम्हें ऐशो-आराम प्रदान करने की तो मैंने वो ऐशो-आराम तुम्हें नहीं बल्कि उस चिडिय़ा को दिया था जो पिछले हर जन्म से मेरी सच्ची भक्त है।
चिडिय़ा को रहने के लिए ठिकाना चाहिए था इसलिए मैंने तुम्हें झोंपड़ी दी। चिडिय़ा को खाने के लिए दाने चाहिए थे, तो मैंने तुम्हारें खेतों की पैदावार बढ़ाई। चिडिय़ा का परिवार बढ रहा था उसे ज्यादा जगह चाहिए थी। इसलिए मैंने मैंने तु हें बंगला दिया ताकि चिडिय़ा के लिए झोंपड़ी खाली हो जाए। यद्यपि झोंपड़ी टूटने के बाद चिडिय़ा अब वहां नहीं है इसलिए तुम्हें वही मिल रहा है जो तुम्हारें अपने कर्मो में है।
संदेश
साथियों- मुझे नहीं पता प्रभु की बातें सुनकर किसान के दिल पर क्या गुजरी। आपसे एक बात अवश्य कहूगां अक्सर किसी की मदद करते समय हमारे मन में ये याल आ जाता है कि अमुक व्यक्ति मेरी अमुक वस्तु का उपयोग कर फायदा उठा रहा है या मेरी अमुक वस्तु मुसीबत के समय में उसका सहारा बनी या मैंने उसका काम चलाया। लेकिन हम लोग भूल जाते हैं कि शायद उस वस्तु को परमात्मा ने हमें इसलिए दिया हो कि वो किसी के काम आए।
हो सकता है जो वस्तु, हुनर, बुद्धि हमारे पास है उसके साथ किसी और का भाग्य परमात्मा ने जोड़ रखा हो। हो सकता है जिस जानवर को हम पाल रहे हैं उसकी रोटी के साथ परमात्मा ने हमारा ऐश्वर्य बांध रखा हो। इसलिए किसी की मदद करते समय मन में अभिमान न लाए। अपनी वस्तु के किसी दूसरे के उपयोग किए जाने पर तुच्छ भावना से उसे न देखें। हो सकता है जो वस्तु हमारे पास है वो किसी और की किस्मत के कारण हमारे पास हो।
बाल कहानी संग्रह- “क्योंकि हर कहानी कुछ कहती है”
संपादक- पंकज तन्हा
प्रकाशक- दलबीर सिंह खालसा
प्रकाशन-ओपन लैटर