बस तू ही तू
बस तू ही तू उस राह पर चल,
बस तू ही तू उसे देख मचल।
बेशक राह टेढ़ी मेढ़ी है,
पर चीर समय से मंजिल अचल।
बस तू ही तो वो झरना है,
जिसे ऊंचे राह से उतरना है।
फिर राह में गहरे गड्ढों को,
अपने तन से भरना है।
राह में टूटी धार तेरी जो,
फिर से भी तो संवरना है।
खाई में फिर गहरी गिर कर,
सागर पार भी उतरना है।
रहनुमाई की न आशा कर,
न विध्वंसता की निराशा कर।
सांस तेरी जब तक न छूटे,
चलने की अभिलाषा कर।
दुनिया आनंद लेती है,
तेरे टूटने का गिरने का।
पर तेरा काम तो चलना है,
मंजिल पार उतरना है।
कुछ और नहीं बस करना है,
बस यूं ही चलते रहना है।
अनमोल आज इस जीवन को,
उस सागर पार ही करना है।
बस तू ही तू राह पर चल ……….।
-गोविंद ठाकुर की कलम से……