नाहन (शैलेंद्र कालरा): तकरीबन 7500 फुट ऊंचाई पर हरिपुरधार के नजदीक स्थित मां भंगयाणी माता मंदिर पर मनमोहक चांदी की परत बिछ गई है। मौसम साफ होने की स्थिति में सामने मध्य हिमालय की पर्वत श्रृंखलाएं भी परिसर के सौंदर्य को चार चांद लगा रही हैं। हालांकि संगड़ाह-हरिपुरधार मार्ग अवरुद्ध होने की वजह से सैलानी इस मंदिर तक नहीं पहुंच पा रहे हैं।
कडक़ती ठंड में दोनों वक्त पूजा-अर्चना नियमित रूप से चलती है। मंदिर परिसर में दो से अढ़ाई फुट बर्फ डल चुकी है। सामने बर्फ से लकदक चूड़धार चोटी भी गजब नजर आती है। इस मंदिर की सीमा से ही शिमला जिला शुरू हो जाता है। उत्तर भारत के कई राज्यों से साल भर मां के चरणों में श्रद्धालु पहुंचते हैं।
क्या है मंदिर का इतिहास?
भगवान शिव के अवतार शिरगुल जी महाराज की मां भंगयाणी माता मुंह बोली बहन है। ऐसा माना जाता है कि जब शिरगुल जी महाराज दिल्ली गए थे तो उनकी ख्याति देखकर मुगल शासक ने उन्हें चमड़े की जंजीरों में बंदी बना लिया था। चाहकर भी भगवान शिरगुल चमड़े की जंजीर नहीं तोड़ सकते थे।
उस वक्त बागड़ के गुगा पीर ने जेल की सफाई कर्मचारी की मदद से भगवान शिरगुल को आजाद करवाया। इसके बाद से महिला सफाई कर्मी शिरगुल जी महाराज ने अपनी मुंहबोली बहन बना लिया। मां भंगयाणी को आशीर्वाद दिया कि चोटी पर जो श्रद्धालु चोटी पर उनके दर्शनों को आएगा, उसकी यात्रा तभी पूरी होगी जब वह बहन के मंदिर में भी शीश नवाजेगा।
बताते हैं कि मंदिर परिसर में ही शिवलिंग की उत्पत्ति भी खुद हुई थी, जिसे अब सहेज कर मंदिर कमेटी ने रखा है। मंदिर कमेटी ने श्रद्धालुओं के लिए उचित रात्रि ठहराव की भी व्यवस्था की हुई है। यहां से जुड़ी जानकारी मंदिर कमेटी की वैबसाइट पर भी उपलब्ध है। मंदिर तक पहुंचने के लिए चंडीगढ़ से 175 किलोमीटर व देहरादून से 165 किलोमीटर की दूरी है। जबकि नाहन से 88 किलोमीटर का सफर है।