एमबीएम न्यूज़ / धर्मशाला :
हिमाचल प्रदेश की समृद्ध संस्कृति अतुलनीय है। हिमाचल प्रदेश को एक पहाड़ी राज्य के रूप में भी जाना जाता है,चूँकि इसकी भौगोलिक संरचना छोटी-बड़ी पहाड़ियों से हुई है, जिसमें धौलाधार, कालीधार, शिवालिक आदि पहाड़ियां प्रमुख है। पहाड़ों के रीति-रिवाज, तीज त्यौहार, मेलों आदि की अपनी ही विशेषताएं हैं। इसी प्रकार विभिन्न धर्मों के लोगों के यहां रहने के कारण धर्म संबंधी मान्यताओं का अपना अलग स्थान है।
लोक कलाओं, विचारधाराओं एवं परम्पराओं की सहज धारा को लोक संस्कृति के अंतर्गत स्थापित किया जाता है। त्यौहार एवं मेले यहां के जन जीवन से जुड़े हुए हैं। भले ही कुछ त्यौहार एवं मेले अलग-अलग जिलों में भिन्न-भिन्न तरीके से मनाए जाते हैं, कुछ एक त्यौहार सभी के सांझे हैं। ठीक इसी तरह कई प्रकार के मेलों का आयोजन किया जाता है। जिसमें लोग अपनी घरेलू जरूरतों के अनुसार आवश्यक खरीददारी करते हैं, वहीं अपने रिश्तेदारों, मित्रों एवं परिचितों से भी मुलाकात हो जाती है। कांगड़ा के राज्य स्तरीय मेलों में बैजनाथ की शिवरात्रि, पालमपुर की होली, कालेश्वर महादेव देहरा की बैसाखी, जयसिंहपुर का दशहरा, प्रागपुर की लोहड़ी तथा जिला स्तरीय मेलों में काठगढ़ इंदौरा की शिवरात्रि, ज्वाली की बैसाखी आदि के अतिरिक्त कई प्रकार के ग्राम स्तरीय मेलों का आयोजन किया जाता है। बैजनाथ एवं काठगढ़ में शिवरात्रि पर हजारों श्रद्धालु भगवान शिव के दर्शन कर पुण्य कमाते हैं, वहीं अलौकिक सुख भी प्राप्त करते हैं।
पालमपुर होली के साथ-साथ बैजनाथ, जयसिंहपुर उपमण्डलों में भी होली को बड़े ही आकर्षक एवं रोचक अंदाज में मनाया जाता है। इस अवसर पर खूबसूरत व वरवस ही आकर्षित करने वाली झांकियां ग्राम स्तर पर निकाली जाती है जिसमें सैंकड़ों लोग शामिल होते हैं। आकर्षक झांकियों को नकद राशि देकर पुरस्कृत भी किया जाता है। राज्य स्तरीय एवं जिला स्तरीय मेले के अलावा उपमण्डल व ग्राम स्तर पर मनाए जाने वाले मेलों में भी विभिन्न सांस्कृतिक संध्याओं का आयोजन किया जाता है, जिसमें प्रदेश के कई प्रतिभावान व उभरते कलाकारों को अपना हुनर एवं कला का प्रदर्शन करने का मौका मिलता है। कला प्रदर्शन के साथ इन कलाकारों को मेला समितियों द्वारा नकद राशि भी दी जाती है। जिला में मनाए जाने वाले मेलों में कई प्रकार की खेल प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं, जिसमें सीनियर एवं जूनियर वर्ग की कई खेल प्रतिस्पर्धाएं होती है। विजेता एवं उप-विजेता खिलाड़ियों को जहां नकद राशि देकर सम्मानित किया जाता है,वहीं उन्हें प्रमाण पत्र एवं स्मृति चिन्ह में प्रदान किए जाते हैं।
कांगड़ा का सबसे बड़ा दंगल (छिन्ज) बाबा क्यालू गंगथ के नाम से मशहूर है। जिसमें लगभग 50 से 80 लाख रूपये उक्त दंगल में पहलवानों को दिए जाते हैं। गंगथ छिन्ज की एक दिलचस्प परम्परा वर्तमान में भी प्रचलन में हैं। पुराने समय में गंगथ शहर को बर्तनों के शहर के नाम से जाना जाता था। शायद तभी आज भी लगभग प्रत्येक पहलवान को कोई न कोई बर्तन अवश्य दिया जाता है जो कि एक ढोलनू से लेकर चरोटी तक हो सकता है। कांगड़ा में मनाए जाने वाले मेलों में कालेश्वर व ज्वाली का बैसाखी मेला, बैजनाथ एवं काठगढ़ का शिवरात्रि मेला, पालमपुर व धीरा के होली मेलों के अतिरिक्त सलयाना, परौर, दाड़ी, खनियारा, भीमटिल्ला, सुनहेत, हार, मधीनी आदि के अलावा बहुत सारे ग्राम स्तरीय दंगल मेलों का आयोजन स्थानीय स्तर पर किया जाता है। जिसमें प्रदेश के कई विशिष्ट एवं अति विशिष्ट व्यक्तियों के साथ-साथ आम जनता बड़े स्तर पर भाग लेती है। जिला कांगड़ा में आयोजित दंगलों में प्रदेश स्तरीय पहलवानों के साथ-साथ लगभग उत्तरी भारत के पहलवानों के दांव-पेच देखने को मिलते हैं। वर्तमान में सरकार द्वारा महिलाओं को पुरूषों के बराबर दिए हक को आत्मसात करके महिला पहलवान भी दंगलों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही हैं। सरकार द्वारा समय-समय पर उक्त मेलों को प्रोत्साहित करने एवं बढ़ावा देने हेतु धनराशि भी उपलब्ध करवाई जा रही है।
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