वी कुमार /मंडी
छोटी काशी के नाम से विख्यात शहर में हर वर्ष अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव मनाया जाता है। इस साल यह महोत्सव 5 से 11 मार्च तक मनाया जा रहा है।
क्या है इस महोत्सव के पीछे की इतिहास इसी पर पेश है खास रिपोर्ट…
मुख्यालय पर शिवरात्रि के अगले दिन से मनाया जाने वाला 7 दिवसीय शिवरात्रि महोत्सव प्रदेश स्तर पर ही नहीं,बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुका है। इसकी सही शुरूआत की तो किसी को जानकारी नहीं,लेकिन यह सच है कि शिवरात्रि महोत्सव का मंडी रियासत के राज परिवार के साथ गहरा नाता है। जब तक शहर के राज माधव राय की पालकी नहीं निकलती तब तक शिवरात्रि महोत्सव की शोभायात्रा नहीं चलती। राज माधव राय भगवान विष्णु या कहें कि भगवान श्रीकृष्ण का ही रूप हैं। 17वीं सदी के दौरान रियासत के राजा सूरज सेन के सभी 18 पुत्रों की मौत हो गई और उन्होंने अपना राजपाठ भगवान श्रीकृष्ण के रूप यानी राज माधव राय के नाम कर दिया और खुद सेवक बन गए। यही कारण है कि जब भी इस महोत्सव की शुरूआत होती है तो सीएम सबसे पहले राज माधव राय की पूजा करते हैं और इसके बाद ही इनकी पालकी को शोभायात्रा में सबसे आगे चलाया जाता है।
शिवरात्रि महोत्सव को लेकर एक मान्यता यह भी है कि यह एक ऐसा उत्सव है,जिसमें शैव,वैष्णव और लोक देवता का संगम होता है। शैव भगवान शिव को कहा गया है, वैष्णव भगवान श्री कृष्ण को और लोक देवता देव कमरूनाग को। इन तीनों की अनुमति के बाद ही शिवरात्रि महोत्सव शुरू होता है। इतिहासकार बताते हैं कि राजाओं के दौर में वर्ष में एक बार यानी शिवरात्रि के दौरान रियासत के सभी ग्रामीण अपने ग्राम देवताओं के साथ राजा से मिलने आते थे। इस दौरान वर्ष भर का लेखा-जोखा भी होता था और शिवरात्रि का उत्सव भी मनाया जाता था। धीरे-धीरे इस महोत्सव का स्वरूप बदलता गया। राजाओं के राज समाप्त हुए और आज इस महोत्सव का विकसित रूप मंडी के ऐतिहासिक पड्डल मैदान में देखने को मिलता है। अब इस महोत्सव की सारी बागडोर प्रशासन के पास आ गई है। उपायुक्त इसके चेयरमैन होते हैं और उन्हीं की देखरेख में यह सारा महोत्सव आयोजित होता है।
इस महोत्सव में मंडी रियासत के करीब 215 देवी व देवताओं को प्रशासन निमंत्रण पत्र भेजता है। हालांकि कुछ पंजीकृत देवी व देवता महोत्सव में नहीं आते,जबकि बिना पंजीकरण वाले देवी व देवता भी इसमें शिरकत करते हैं। देव समागम का यह अदभुत नजारा देखने के लिए देश व विदेश के लोग यहां पहुंचते हैं और देव समागम ही इसका मुख्य आकर्षण भी है।