देवभूमि के 200 देवी-देवताओं ने भी भगवान रघुनाथ की रथयात्रा में भाग लिया। भगवान रघुनाथ के इस रथ को हजारों भक्तजनों की मदद से ढालपुर मैदान के बीचों-बीच अस्थाई कैंप तक लाया गया। जहां भगवान रघुनाथ की प्रतिमा को स्थापित किया गया। इसके साथ ही सात दिवसीय दशहरे मेले का आगाज हुआ। हजारों लोगों का जयघोष, सैैंकड़ों देवताओं के देवरथ, सैैंकडों की पुलिस टुकडिय़ां और हजारों में दर्शकों के सैलाब से कुल्लू की गलियां और शहर पूरी तरह से धार्मिक आस्था में सराबोर हो गए।
प्राचीन परंपरा के अनुरूप राजपरिवार ने इस शोभायात्रा का नेतृत्व किया, जो अपनी पारंपरिक वेशभूषा में अतिशोभायमान दिख रहे थे। एक वर्ष के बाद विभिन्न क्षेत्रों से आए देवी-देवताओं का आपसी मेल-मिलाप का अलौकिक दृश्य देखते ही बन रहा था।
भगवान रघुनाथ के मुख्य छड़ीबरदार महेश्वर सिंह और उनके परिवार ने भगवान रघुनाथ के साथ मुख्य भूमिका निभाई। रथ यात्रा के दौरान राज्यपाल आचार्य देवव्रत मौजूद रहे और रथ यात्रा का आनंद उठाया। इसके साथ ही प्रदेश हाई कोर्ट के जस्टिस, सांसद राम स्वरूप शर्मा, उपायुक्त कुल्लू यूनुस सहित अधिकारियों और राजनेताओं ने रथयात्रा का आनंद लिया। धरती पर उतरा देवलोक, सैंकड़ों देवी देवताओं का हुआ भव्य मिलन देवभूमि कुल्लू में दशहरा के आगाज को निकली चार रथ यात्राएं कुल्लू, मणिकर्ण, हरिपुर और मकराहड में निकाली रघुनाथ की भव्य रथ-यात्रा मणिकर्ण दशहरे में रावण के बूत को लोग मारते हैं पत्थर गौरीशंकर/कुल्लू अठारह करडू की सौह ढालपुर में एक सप्ताह के लिए स्वर्गलोक से समस्त देवी-देवताओं ने आकर डेरा डाल दिया है।
वाद्ययंत्रों की मधुर स्वर लहरियों से सारा वातावरण देवमय हो उठा है। 200 से अधिक देवी-देवताओं के अस्थायी शिविरों में दर्शनों को रोजाना हजारों की भीड़ उमड़ेगी। वर्ष भर बाद एक ही स्थान पर जिला के तमाम देवताओं की उपस्थिति और उनके यहां दर्शन को लेकर आए श्रद्धालु हर कोई इस पल को किसी भी सूरत में गवाना नहीं चाहते।
दशहरा भी इसी देव संस्कृति की झलक पेशकर विश्व मानचित्र पर अपनी विशेष पहचान बना चुका है। हालांकि इसका व्यापारिक एवं सांस्कृतिक पक्ष तब तक अधूरा है जब तक देव समागम का पहलू इसमें समाहित न हो। दशहरे की शोभा यहां पर पधारने वाले देवी-देवताओं और उनके साथ आए हुए देवलुओं और बंजतरियों के साथ होती है। दशहरे में अस्थायी शिविरों के पास प्रतिदिन देवताओं का आपसी मिलन हजारों आंखों को प्रत्यक्ष रूप में रोमांचित कर रहा है। देश के कोने कोने से आए हुए श्रद्धालु सबसे पहले अधिष्ठïता रघुनाथ के दर्शन कर रहे हैं।
देवभूमि कुल्लू में दशहरा के आगाज को निकली चार रथ यात्राएं एक तरफ जहां समूचे भारत में दशहरा उत्सव संपन्न हो गया वहीं देवभूमि हिमाचल के कुल्लू घाटी में दशहरा मनाने की अलग ही रिवायत चली आ रही है। यहां शनिवार को एक तरफ जहां जिला मुख्यालय कुल्लू के ऐतिहासिक मैदान ढालपुर में भगवान रघुनाथ की रथयात्रा से सात दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय कुल्लू दशहरा का आगाज हुआ तो वहीं जिला के चार और स्थानों में भी इस मौके पर रघुनाथ जी की रथ यात्रा निकाली गई।
अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा में भगवान रघुनाथ जी की रथ यात्रा ऐतिहासिक मैदान में सैंकड़ों देवी देवताओं के साथ हजारों वाद्ययंत्रों की थाप पर हुई। एक तरफ जहां जिला मुख्यालय में रथयात्रा के साथ दशहरा का आगाज किया गया। वहीं, हरिपुर में भी दशहरा उत्सव के आगाज को रघुनाथ की रथयात्रा निकाली गई। इतना ही नहीं ऐतिहासिक तीर्थ स्थल मणिकर्ण में भी दशहरा उत्सव के मौके पर भगवान रघुनाथ की रथ यात्रा निकाली गई। मणिकर्ण में हुई थी दशहरा उत्सव की शुरूआत ऐतिहासिक दृष्टि से दशहरे की शुरूआत राजा जगह सिंह ने हालांकि विक्रमी संवत 1653 में मणिकर्ण में की थी व तब से आज तक प्रतिवर्ष मणिकर्ण में दशहरा बड़ी धूमधाम व पारंपारिक रीति रिवाजों के अनुसार मनाया जाता है।
इस बार भी देवताओं ने भगवान रघुनाथ की रथ यात्रा में भाग लिया। मणिकर्ण में भी भगवान रघुनाथ की रथ यात्रा हुई, जहां पार्वती नदी के बीच से मिटटी द्वारा उस मिटटी को रावण का रूप दिया जाता है व घाटी के लोग उस मटके को पत्थरों से मारते है तथा जो भी व्यक्ति मट्का फोड़ देता है। वह हनुमान के रूप में माता सीता को भगवान रघुनाथ तक पहुंचाता है। जबकि इस दौरान मकराहड में भी भगवान रघुनाथ जी की रथयात्रा निकाली गई।