हमीरपुर (एमबीएम न्यूज़) : भोरंज विस के उपचुनाव की तिथियां घोषित होने के उपरांत सत्तारूढ़ दल ने इस पर विजय परचम लहराने के लिए अंदरखाते अपनी रणनीति बनानी शुरू कर दी है। इस संदर्भ में पार्टी ने किसी नए चेहरे को प्रत्याशी उतारने का मन बनाया हुआ है। पार्टी ने पिछले हारे हुए चेहरों के बजाय उसी क्षेत्र के ऐसे व्यक्ति को टिकट देने का निर्णय लिया है। जोकि भाजपा के गढ़ में सेंध लगा सके।
इस संदर्भ में सत्तारूढ़ दल नेताओं ने अपनी कई एजैंसियों तथा पार्टी के जिला के वरिष्ठ नेताओं से प्रत्याशी के चयन को लेकर चर्चा की और पता चला है कि सरकार की एजैंसियों व पार्टी नेता वर्तमान में जो पार्टी प्रत्याशी टिकट के चाहवान हैं। उनकी स्थिति अच्छी नहीं बताई गई है। एजैंसियों का कहना है कि भोरंज से नए प्रत्याशी को ही टिकट दिया जाएए ताकि भाजपा का 26 साल पुराना रिकार्ड तोड़ा जा सके।
पता चला है कि पार्टी मुख्यमंत्री के कार्यालय में निजी सचिव के पद पर कार्यरत सरोज सिंह को रणभूमि में उतार सकती है। वह भोरंज विस क्षेत्र के चंबोह गांव के रहने वाले हैं और धीमान समुदाय से संबंध रखते हैं और अधिकांश पार्टी के पदाधिकारी सरोज सिंह का समर्थन कर रहे हैं। कांग्रेस की टिकट के लिए सुरेश कुमार और डा.रमेश डोगरा भोरंज से पिछला टिकट प्राप्त करने में सफल हो गए थे। उनका नाम भी टिकट दावेदारी में प्रमुखता से लिया जा रहा है।
इसके अतिरिक्त कांग्रेस नेत्री प्रोमिला देवी जोकि इसी विस क्षेत्र से दो बार जिला पार्षद रह चुकी हैं और प्रेम कौशल जो वर्तमान में एपीएमसी के अध्यक्ष हैं। मुख्यमंत्री वीरभद्र समर्थकों में गिनती की जाती है। प्रेम कौशल ने दो बार चुनाव लड़ा। सुरेश कुमार ने दो बार पार्टी सिंबल पर चुनाव लड़ा तथा रमेश डोगरा पहले भी कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ चुके हैं और इन तीनों हार का सामना कर चुके हैं।
भोरंज में कांग्रेस पार्टी की अंतर्कलह के कारण ही भाजपा इसका लाभ उठाती रही और अब यह उपचुनाव सरकार व संगठन के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न है क्योंकि कुछ माह के बाद ही प्रदेश के विस चुनाव हैं। अगर यहां से कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ता है तो पूरे प्रदेश में कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ेगा।
यह उपचुनाव मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह व प्रदेश कांग्रेस सुखविंद्र सिंह के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न है। क्योंकि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखविंद्र सिंह का गृह जिला भी है। अगर यहां से कांग्रेस हारती है तो उनकी अध्यक्ष पद के लिए भी खतरे की घंटी साबित हो सकती है।