मंडी (वी.कुमार) : अंतरर्राष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव में भाग लेने आये देवलु इन दिनों दोपहर के भोजन में मंडयाली धाम का आनंद उठा रहे हैं।देवलुओं को मंडयाली धाम खिलाने की परंपरा 1983 से चली आ रही है और आज तक विभिन्न समाजसेवी इसमें अपना योगदान दे रहे हैं।
हिंदुस्तान में जहां तरह-तरह की परम्परायें देखने को मिलती हैं वहीं इन परंपराओं के साथ जुडे भोजन का भी अपना ही एक अलग मजा होता है। छोटी काशी के नाम से विख्यात शहर में मंडयाली धाम खिलाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। बात चाहे शादी विवाह की हो या फिर अन्य सार्वजनिक त्यौहारों की, मंडयाली धाम के बिना यहां का कोई भी कार्यक्रम संपन्न नहीं होता। यही कारण है कि जब अंतर्राष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव आयोजित होता है तो यहां पर आठ दिनों तक लगातार देवलुओं और अन्य मेहमानों को मंडयाली धाम परोसी जाती है। इन दिनों पकाई जा रही मंडयाली धाम का प्रतिदिन पांच हजार से अधिक लोग आनंद उठा रहे हैं, इसमें उन्हें प्रतिदिन तरह तरह के पकवान खिलाये जा रहे हैं, जिसमें बदाने का मीठा, सेपू बड़ी, राजमाह, मटर पनीर, कद्दू का खटटा और दाल कड़ी मुख्य रूप से शामिल है। जो खाना आम लोगों को खिलाया जाता है वही खाना वीआईपी को भी परोसा जाता है। यह जिला का दूसरा सबसे बड़ा भंडारा होता है जिसमें रोजाना 10 क्वींटल चावल और दाल-सब्जी बनाई जाती है।
पकाई जा रही मंडयाली धाम पर प्रतिदिन डेढ लाख का खर्च आ रहा है, जिसे शहर की विभिन्न सामाजिक और धार्मिक संस्थाओं के सौजन्यों से आयोजित किया जा रहा है। इसमें ईंधन और लेबर का खर्च प्रशासन की तरफ वहन किया जाता है। हालांकि पहले शिवरात्रि महोत्सव के दौरान मंडयाली धाम खिलाने की कोई प्रथा नहीं थी, लेकिन वर्ष 1983 से इस पहल को शुरू किया गया और यह क्रम आज भी जारी है।
वहीं अगर मंडयाली धाम के स्वाद की बात करें तो प्रदेश के मुख्यमंत्री से लेकर राज्यपाल और अन्य उच्च पदों पर आसीन लोग भी इसका स्वाद चखकर इसकी प्रशंसा कर चुके हैं। इसके स्वाद के दिवाने जिला में आयोजित होने वाले समारोहों में बरबस ही खिंचे चले आते हैं, क्योंकि यहां आयोजित होने वाले समारोहों में खाने के लिये सिर्फ मंडयाली धाम ही परोसी जाती है। मंडयाली धाम को जमीन पर बैठकर पत्तों से बने पत्तल पर खाया जाता है, जो कि पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुंचाते।