मंडी (वी.कुमार) : जब 22 वर्षों के बाद अराध्य देव के दर्शनों का सौभाग्य मिलता है तो इसकी खुशी ही अलग होती है। कुछ ऐसी ही खुशी इस वक्त जिला के लोगों को भी हो रही है। 22 वर्षों के बाद देव पराशर ऋषि के दर्शनों को लोग पहुंचे।
जिला की स्नोर घाटी में विराजमान रहने वाले देवता पराशर ऋषि 22 वर्षों के बाद छोटी काशी पधारे हैं। 22 वर्ष पहले देव पराशर ऋषि अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव में उचित मान-सम्मान न मिलने के कारण रूष्ट हो गए थे और जिला में न आने का निर्णय लिया था। इस बार जिला प्रशासन ने देवता को मनाने की भरसक कोशिश की और यह कोशिश कामयाब भी हुई। 22 वर्षों के बाद देवता पराशर ऋषि पधारे हुए हैं। देवता पराशर ऋषि रियासत के राजपरिवार के कुल देवता हैं और जब भी आते हैं तो राजमहल में ही रूकते हैं। राजमहल के जिस हिस्से में देवता रूकते हैं उसे स्थानीय भाषा में ’’राजा का बेहड़ा’’ कहा जाता है। यह स्थान उन देवी देवताओं के लिए है जो शिवरात्रि महोत्सव में भाग लेने तो आते हैं लेकिन पूरे महोत्सव के दौरान सिर्फ एक ही स्थान पर रूके रहते हैं। भक्त यहीं पर आकर देव पराशर ऋषि के दर्शन करके उनका आशीवार्द प्राप्त कर रहे हैं।
देव पराशर ऋषि मंडी से जाने से पहले एक यज्ञ करवाते हैं जो 3 मार्च की शाम को राजमहल में ही किया जाएगा। देवता के कारदार बलबीर ठाकुर ने बताया कि यह हवन पूरे शहर और इलाके की सुख समृद्धि के लिए किया जाता है। बलबीर ठाकुर का कहना है कि देवता से पूरे महोत्सव को निर्विघ्न आयोजित करने की कामना की गई है।
वहीं लोगों में देवता पराशर ऋषि के आगमन पर भारी उत्साह देखने को मिल रहा है। बता दें कि देवता पराशर ऋषि का मूल स्थान जिला की दुर्गम स्नोर घाटी में है। इस घाटी तक अधिकतर लोग पहुंच नहीं पाते और 22 वर्षों बाद लोगों को यह सौभाग्य मिला है कि उन्हें जिला में ही देवता के दर्शन और आशीवार्द प्राप्त हो रहा है। लोगों ने उम्मीद जताई कि आने वाले समय में देवता पराशर ऋषि के आने का यह क्रम इसी प्रकार से जारी रहेगा।
देवता पराशर ऋषि का देवरथ शिवरात्रि महोत्सव में नहीं लाया जाता। सिर्फ देवता के दो मोहरें और तीन छडि़यां ही मेले में आती हैं और भक्तों को इन्हीं के दर्शनों का सौभाग्य मिलता है। लेकिन लोगों में इस बात को लेकर ज्यादा उत्साह है कि 22 वर्षों से जिस देवता ने जिला में आना बंद कर दिया था उन्होंने इस बार से आने का सिलसिला फिर से शुरू कर दिया है।