केलंग (एमबीएम न्यूज़) : जिला लाहौल-स्पीति में सर्दियों के मौसम में त्योहारों और उत्सवों का दौर शुरू हो जाता है। इन्ही उत्सवों में से एक है हल-डा उत्सव, जिसकी घाटी के विभिन्न हिस्सों में इन दिनों धूूम है। इस उत्सव में घाटी के लोग रात के समय में अपने घरों से देवदार की लकड़ी से निर्मित जलती मशाले लेकर हल-डा हो हल-डा हो चिल्लाते हुए जाते हैं।
हल-डा सर्दियों में मनाया जाने वाला एक प्रमुख उत्सव है इस उत्सव में गांव के लोग निर्धारित स्थल पर इक्कठे होकर सामुहिक रूप से पूजा पाठ करते है और सुख समृद्वि की कामना करते है। हलडा उत्सव मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। मान्यता है कि इस उत्सव के माध्यम से दुखों व कष्टों, बुरी आत्माओं को भगाया जाता है। सात दिनों तक चलने वाले इस त्योहार में विभिन्न प्रकार के पकवान बनाये जाते हैं।
मान्यता है कि इस उत्सव के माध्यम से आसुरी शक्तियां भाग जाती हैं। घाटी के लोगों का कहना है कि इस उत्सव के माध्यम से दुखों व कष्टों व बुरी आत्माओं को भगाया जाता है। आपसी भाईचारे का प्रतीक इस उत्सव में देवताओं की खासकर लक्ष्मी की भी विधिवत पूजा अर्चना की जाती है। इस उत्सव में लोग नाच गाकर अपनी खुशी का इजहार भी करते हैं।
घाटी के लोगों का कहना कि हालडा घाटी का प्रमुख त्योहार है, जिसका निर्धारण लामा द्वारा किया जाता है। भले ही वक्त के साथ त्योहारों को मनाने के तरीके बदल रहे हैं, लेकिन आज भी घाटी के लोग अपनी सदियों पुरानी परंपरा को जीवित रखे हुए हैं।