शिमला (शैलेंद्र कालरा): रामपुर उपमंडल की झगोरी पंचायत के शमकोर गांव में जन्मे बेटे मनमोहन सिंह ने हजारों को पछाड़ कर एचएएस टॉपर बनने का सौभाग्य पाया है। सफलता के पीछे की दास्तां भी काफी संघर्षपूर्ण है। छह साल पहले अपनी मां कला देवी को खो दिया था। लिहाजा बेटे की सफलता को देखने के लिए खुद मां इस दुनिया में नहीं है। पिता शिक्षा महकमे से सेवानिवृत हुए, जिन पर ताउम्र परिवार के लालन-पोषण का बोझ रहा।
परिवार में इकलौता बेटा होने की वजह से मनमोहन सिंह को छह-सात साल पहले शादी भी करनी पड़ी। पांच साल की बेटी व पत्नी सपना ने भी मनमोहन सिंह की इस सफलता पर गौरव महसूस किया। एचएएस टॉपर की संघर्षपूर्ण कहानी कई मायनों में अलग है :
- पूरी तरह से ग्रामीण परिवेश में पढ़ाई की। दसवीं अपने गांव में पूरी करने के बाद ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई रामपुर में पूरी की।
- पिता रिटायर हो रहे थे, लिहाजा पहले एलाइड की परीक्षा में कामयाबी हासिल करने में पूरी मेहनत की। मौजूदा समय में किन्नौर जिला में 2014 से बतौर जिला रोजगार अधिकारी तैनात हैं।
- घर चलाने के अलावा गृहस्थी को संभालने के साथ-साथ एचएएस को टॉप करना छोटी सफलता नहीं मानी जा सकती।
- मृदुलभाषी मनमोहन सिंह ने 32 साल की उम्र में सफलता पाई है। ऐसे इलाके में घर है, जहां मोबाइल सिग्रल तक भी ठीक से नहीं आते।
- संघर्ष देखिए, बचपन में मनमोहन को रोजाना चार किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल पहुंचना होता था। मतलब हर रोज 8 किलोमीटर का सफर।
क्या बोले…
एमबीएम न्यूज नेटवर्क से बातचीत में एचएएस टॉपर मनमोहन सिंह ने कहा कि हरेक उम्मीदवार को अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना चाहिए। उन्होंने कहा कि अपनी क्षमता के अनुसार पूरा ध्यान केंद्रित करना चाहिए। एक सवाल के जवाब में बोले, अपना परिणाम शाम साढ़े सात बजे के आसपास पता चला था। बमुश्किल से एक मोबाइल में नेट चल पाया, तब रिजल्ट देखा। उन्होंने कहा कि सफलता मिलने की उम्मीद तो थी, लेकिन टॉप करेंगे इस बात का अंदाजा नहीं था।