शिमला (एमबीएम न्यूज़): हिमाचल प्रदेश में बढ़ते जल संकट से निपटने के लिए विशेष अभियान चलाया जाएगा। इस अभियान में ‘जलपुरूष’ के नाम से विख्यात रेमन मैगसेसे पुरस्कार विजेता राजेन्द्र सिंह का सहयोग व सेवाएं ली जाएंगी। इस अभियान का उद्देश्य पानी के तेज बहाव को कम कर प्राकृतिक जल स्रोतों को पुर्नजीवित करना है।
राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने आज राजभवन में राजेन्द्र सिंह की उपस्थिति में हिमाचल प्रदेश जल संरक्षण साक्षरता अभियान का शुभारम्भ किया। राजेन्द्र सिंह भारत के प्रसिद्ध पर्यावरण कार्यकर्ता हैं जो जल संरक्षण के क्षेत्र में कार्य करने के लिए प्रसिद्ध हैं। इस अवसर पर राज्यपाल ने कहा कि ‘‘ सर्वप्रथम, जल साक्षरता अभियान से विश्वविद्यालयों को जोड़ा जाएगा। वैज्ञानिक, शिक्षक और विद्यार्थियों को अभियान से जोड़कर इसे एक व्यापक रूप दिया जाएगा। बाद में, ग्राम स्तर पर लोगों को इससे जोड़ा जाएगा।’’
उन्होंने चिंता जताई कि प्रदेश में किसानों को खेतों के लिए पानी नहीं मिल रहा है और शहरों में पेयजल की किल्लत है। नदियों वाला प्रदेश जो अन्य राज्यों को जल उपलब्ध करवाता है, स्वयं जल संकट से जूझ रहा है। इसके स्थायी समाधान व जल स्तर को बढ़ाने के लिए राजेन्द्र सिंह, जिन्होंने राजस्थान जैसे प्रदेश को हरा-भरा बनाने में सहयोग दिया है, के अनुभवों का लाभ लिया जाएगा,
इस मौके पर, राजेन्द्र सिंह ने राज्यपाल द्धारा शुरू किए गए इस अभियान का हिस्सा बनने पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि हिमाचल को नदियों वाले राज्य के रूप में जाना जाता है, लेकिन आज यहां ‘बाढ़ या सूखा’ की स्थिति पैदा हो गई है। प्रकृति ने हिमाचल को सब कुछ दिया है, लेकिन जल स्रोतों को जितना हम रिचार्ज कर रहे हैं उससे कहीं गुना डिस्चार्ज कर रहे हैं। प्रदेश में पानी का बहाव तेज है, जिसे कम करना होगा तभी जल स्त्रोत रिचार्ज होंगे।
राज्य के प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण व संवर्द्धन के प्रति राज्यपाल के प्रयासों की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि राज्य को ऐसे अभियानों की जरूरत है। अगर प्रदेश में यह अभियान सुचारू रूप से चलता है, तो पानी की कमी की समस्या से निपटा जा सकता है। उन्होंने आश्चर्य प्रकट किया कि हिमाचल जैसे राज्य में अब पानी का संकट है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में शायद ही ऐसा कोई क्षेत्र होगा जहां 1000 एमएम से कम बारिश होती हो। जनसंख्या घनत्व को इस पानी की मात्रा से जोड़कर देखें तो हिमाचल में पानी की उपलब्धता दूसरे राज्यों से 10 गुना ज्यादा है।
उन्होंने कहा, ‘‘लोगों में जल की समझ पैदा करने की आवश्यकता है। पानी रूकेगा तभी यह राज्य समृद्ध व सुखी बना रहेगा। राजनेताओं को भी समझना होगा कि पानी व किसानी बह जाएगी, तो प्रदेश विकास के पथ पर आगे नहीं बढ़ पाएगा।’’
उन्होंने कहा कि देश में यह स्थिति है कि जितने भी वॉटर लैवल हैं, 72 प्रतिशत ओवरड्रॉफ्ट हैं। हिमाचल के जल संकट को देखते हुए इस अभियान की बहुत आवश्यकता है। उन्होंने प्रदेश में युवाओं और ग्रामीणों को प्रशिक्षित करने पर सहमति जताई। इसके लिए उन्होंने दो स्तर पर कार्य करने का सुझाव दिया। एक, बहते पानी को रोकना और दूसरा, फसल चक्र को जल से जोड़ना। इसके अलावा, कम पानी के उपयोग से बेहतर परिणाम निकालने पर विचार करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि नदियों को जोड़ना महंगा कार्य है। इसके विपरीत नदियों को समाज से जोड़ा जाना चाहिए। ऐसा ही कार्य उन्होंने राजस्थान में किया, जिसका यह परिणाम हुआ कि लोग वापस गांव की ओर आए।